पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२२
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
३२ | यात्रादानम् | .... .... ३२३ |
३३ | पौरवाक्यम् | .... .... ३३५ |
३४ | दशरथसमाश्वासनम् | .... .... ३४० |
३५ | कैकेयीगर्हणम् | .... .... ३५२ |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
३२ | ||
८१ | समानयत् सुयज्ञं च वासिष्टं लक्ष्मणस्तथा । | .... ३२३ |
तस्मै ददौ तदा रामो धनधान्यादिकं बहु ॥ | ....३२५ | |
८२ | एवमेवेतरेभ्योऽपि पात्रेभ्यः प्रददौ धनम् । | .... ३२७ |
स्वोपजीविजनेभ्योऽपि ददौ रामो धनं बहु ॥ | ....३२९ | |
८३ | त्रिजटाख्याय विप्राय गोसहस्रं तदा ददौ । | .... ३३१ |
सर्वान् संमानयामास यथार्हं राघवस्तदा ॥ | .... ३३४ | |
३३ | ||
८४ | ततस्तातं ययौ रामः सीतया लक्ष्मणेन च । | .... ३३५ |
स्थ्यायां गच्छततांस्तु पौरा दीना व्यलोकयन् ॥ | .... ३३७ | |
८५ | कैकेयीं गर्हयामासुः संतप्ता बहुधा जनाः । | ....३३९ |
३४ | ||
ससीतालक्ष्मणो रामः पितुर्गेहमथाविशत् ॥ | ....३४१ | |
८६ | तान् दृष्ट्वा नृपतिर्दुःखात् पपात भुवि मूर्छितः । | .... ३४३ |
सान्त्वयामास रामस्तु पितरं धर्मवत्सलः ॥ | .... ३४५ | |
८७ | लब्धसंज्ञं ततस्तातं रामो वचनमब्रवीत् । | .... ३४७ |
प्रस्थितान्नो वनं, राजन् ! अनुजानीहि मा चिरम् ॥ | .... ३४९ | |
८८ | हाहाकारस्तदा तत्र दारुणः समजायत । | .... ३५१ |
३५ | ||
ततः सुमन्त्रः कैकेयीं गर्हयामास दुःखितः ॥ | ....३५३ | |
८९ | न युक्तं, देवि ! रामस्य गुणिनो विप्रवासनम् । | .... ३५५ |
मा गच्छ मातुस्ते मार्गे साधुलोकविनिन्दिते ॥ | .... ३५७ | |
९० | परिवादो हि ते, देवि ! महान् लोके चरिष्यति । | .... ३४९ |