श्लोखसङ्ख्या |
अवान्तरविषयाः
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२८
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एवं ब्रुवन्तीमपि तां नैच्छन्नेतुं स राघवः ॥ |
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२९३
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७४ |
बोधयामास विविधान् वनवासश्रमानसौ । |
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२९५
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१४ |
कथं सहेत दुःखानि वने सीतेत्यमन्यत ॥ |
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२९७
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२९
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७५ |
पुनरश्रुमुखी सीता रामं वचनमब्रवीत् । |
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२९९
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त्वया युक्ता न लक्ष्येऽहं दुःखानि विविधान्यपि ॥ |
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३०१
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७६ |
त्वया वियुक्ता नेच्छामि जीवितुं क्षणमप्यहम् । |
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३०३
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३०
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कुतो वा त्यक्तुकामस्त्वं मामनन्यपरायणाम् ॥ |
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३०५
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७७ |
एवं सा शोकसन्तप्ता रुरोद जनकात्मजा । |
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३०७
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तां परिष्वज्य बाहुभ्यां राघवः पर्यसान्त्वयत् ॥ |
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३०९
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७८ |
ततोऽनुमेने त्वागन्तुं वनं स्वेनैव राघवः । |
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३११
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१८ |
सीताऽपि भृशसन्तुष्टा बभूव गमनोत्सुका । |
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३१३
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३१
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७९ |
तदेच्छलक्ष्मणोऽप्येवमनुगन्तुं रघूद्वहम् । |
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३१५
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बहुधा प्रार्थयामास रामं रामानुजस्तदा ॥ |
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३१७
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८० |
अङ्गीचकार सौमित्रेः प्रार्थनां रघुनन्दनः । |
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३१९
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आदिदेशाथ सौमित्रिं सुयज्ञानयनाय सः ॥ |
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३२१
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