पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
२४ | कौसल्यासमाश्वासः | .... .... २६२ |
२५ | कौसल्यास्वस्त्ययनम् | .... .... २७० |
२६ | सीताप्रतिबोधनम् | .... .... २७७ |
२७ | सीताऽनुगमनप्रार्थना | .... .... २८६ |
श्लोखसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | ||
२४ | |||
६६ | अथानुगन्तुमिच्छन्तीं कौसल्यां राघवोऽब्रवीत् । | .... | २६३ |
सर्वैरपि परित्यक्तो जीविष्यति कथं नृपः ॥ | .... | २६५ | |
६७ | शुश्रूष त्वमिह स्थित्वा भर्तारं भृशदुःखितम् । | .... | २६७ |
अन्ततस्त्वनुमेने तं सान्त्विता बहुधा तु सा ॥ | .... | २६९ | |
२५ | |||
६८ | निगृह्य शोकं, रामाय चक्रे स्वस्त्ययनं च सा । | .... | २७१ |
देवताः प्रार्थयामास राघवं रक्षितुं वने ॥ | .... | २७३ | |
६९ | आनम्य मूर्ध्नि चाघ्राय मङ्गलान्याशशस सा । | .... | २७५ |
२६ | |||
ततः प्रतस्थे सीताया निलयं रघुनन्दनः ॥ | .... | २७७ | |
७० | दृष्ट्वा सीतां शुचं सोढुं न शशाक रघूद्वहः। | .... | २७९ |
विवर्णवदनं रामं दृष्ट्वा सीताऽपि विव्यथे ॥ | .... | २८१ | |
७१ | रामोऽप्युवाच तस्यै स्ववनवासं यथाक्रमम् । | .... | २८३ |
गच्छाम्यहं, वसेह त्वं सुखेनेत्यवदत्स ताम् ॥ | .... | २८५ | |
२७ | |||
७२ | एवमुक्ता तु वैदेही भर्तारमिदमब्रवीत् । | .... | २८७ |
किमिदं भाषसे, राम ! भवानेको हि मे गतिः ॥ | .... | २८९ | |
७३ | स्वर्गेऽपि च न काङ्क्षेऽहं वासं, राम ! त्वया विना । | .... | २९१ |