पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१८
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
१७ | कैकेय्यन्तःपुरप्रवेशः | .... .... |
१८ | वनवासनिदेशः | .... .... १८६ |
१९ | रामाभ्यनुज्ञा | .... .... १९६ |
२० | कौसल्याऽऽक्रन्दनम् | .... .... २०५ |
श्लोखसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | ||
१७ | |||
अपश्यन्नगरं रामः प्रजाभिस्समलङ्कृतम् ॥ | .... | १८१ | |
४६ | शुश्राव विविधा वाचः प्रजानां हर्षसंभृताः । | .... | १८३ |
स निवर्त्य जनं रामः कैकेय्याः प्राविशद्गृहम् ॥ | .... | १८५ | |
१८ | |||
४७ | तत्रापश्यन्नृपं रामः शोकभारेण पीडितम् । | .... | १८७ |
पप्रच्छ कैकयीं रामः राज्ञः शोकस्य कारणम् ॥ | .... | १८९ | |
४८ | साऽपि तत्त्वं यथावृत्तं कथयामास कैकयी | .... | १९१ |
वरद्वयप्रदानं च सा प्राह नृपतेस्तदा ॥ | .... | १९३ | |
४९ | रामं सा राजवचनात् वनवासं समादिशत् । | .... | १९५ |
१९ | |||
श्रुत्वाऽपि तद्वचो घोरं रामोऽवोचदविक्रियः ॥ | .... | १९७ | |
५० | आनयाद्यैव भरतं मातर्मातुलमन्दिरात् । | .... | १९९ |
दण्डकारण्यमद्यैव त्वहं यामि गतव्यथः ॥ | .... | २०१ | |
५१ | इत्युक्त्वा पितरौ नत्वा रामस्तस्माद्विनिर्ययौ । | .... | २०३ |
२० | |||
निष्क्रान्ते पुरुषव्याघ्रे सर्वे दीनं विचुक्रुशुः ॥ | .... | २०५ | |
५२ | रामो मातरमाप्रष्टुं तद्गृहं सानुजो ययौ । | .... | २०७ |
मात्रे स्ववनवासादिवृत्तान्तं सोऽब्रवीत्तदा ॥ | .... | २०९ | |
५३ | श्रुत्वा तद्वचनं घोरं कौसल्या न्यपतद्भुवि । | .... | २११ |
वत्स ! जातः कुतो मे त्वं ? इतो वन्ध्यात्वमुत्तमम् ॥ | .... | २१३ | |
वत्स ! संवर्धितो मोघं त्वं हि दुर्गतया मया । | .... | २१५ | |
५४ | आयसं हृदयं मे यत् श्रुत्वाप्येतन्न दीर्यते ॥ | .... | २१७ |