पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१७
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
१३ | दशरथविलापः | .... .... १३९ |
१४ | कैकेय्युपालम्भः | .... .... १४६ |
१५ | रामाह्वानम् | .... .... १६१ |
१६ | रामागमनम् | .... .... १७३ |
श्लोखसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | ||
१३ | |||
३५ | स्पृशामि पादावपि ते प्रसीद मयि, कैकयि ! | .... | १३९ |
श्रमेण महता लब्धः कथं पुत्रो विवास्यते ॥ | .... | १४१ | |
३६ | क्रियतां मे दया, भद्रे ! मयाऽयं रचितोऽञ्जलिः । | .... | १४३ |
एवं रुदन्तं सा प्राह, राजन् ! देहि वरद्वयम् ॥ | .... | १४५ | |
१४ | |||
३७ | नो चेत् ते पुरतोऽद्यैव परित्यक्ष्यामि जीवितम् । | .... | १४७ |
एवमुक्तस्तया राजा स भ्रान्तहृदयोऽभवत् ॥ | .... | १४९ | |
३८ | ज्येष्टं पुत्रं प्रियं रामं द्रष्टुमैच्छत् तदा नृपः । | .... | १५१ |
ततः प्रभाते त्वागच्छत् वसिष्ठो मुनिसत्तमः ॥ | .... | १५३ | |
३९ | रामाभिषेकं सन्नह्य राजं स द्रष्टुमाययौ । | .... | १५५ |
ततः सूतो यथापूर्वं बोधयामास पार्थिवम् ॥ | .... | १५७ | |
४० | तदा तमब्रवीद्रामं आनयेहेति कैकयी । | .... | १५९ |
१५ | |||
तच्छ्रुत्वा निर्गतः सूतः ददर्श द्वारि भूसुरान् ॥ | .... | १६१ | |
४१ | तेषामागमनं सूतः तदा राज्ञे व्यजिज्ञपत् । | .... | १६३ |
राजा त्वाज्ञापयामासानेतुं रामं पुनस्तदा ॥ | .... | १६५ | |
४२ | स राजवचनं श्रुत्वा प्रतस्थे राममन्दिरम् । | .... | १६७ |
रामाभिषेकसरंभान् पश्यन् रामगृहं ययौ । | .... | १६९ | |
४३ | विवेशावार्यमाणः सः रामस्य भवनं शुभम् । | .... | १७१ |
१६ | |||
ससीतालक्ष्मणं रामं सुमन्त्रस्तत्र दृष्टवान् ॥ | .... | १७३ | |
४४ | कृत्वा प्रणामं रामाय राजाज्ञां स न्यवेदयत् । | .... | १७५ |
रामः सीतामनुज्ञाप्य निर्ययौ सहलक्ष्मणः ॥ | .... | १७७ | |
४५ | तं राजमार्गे गच्छन्तं दृष्टा मुमुदिरे जनाः । | .... | १७९ |