पुटमेतत् सुपुष्टितम्
१५
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
८ | मन्थरोपदेशः | .... .... ६५ |
९ | रामप्रवासनाध्यवसायः | .... .... ७८ |
१० | कैकेय्यनुनयः | .... .... ९४ |
श्लोखसङ्ख्या | आवान्तरविषयाः | ||
८ | |||
रामाभिषेक श्रुत्वाऽभूत् कैकेयी भृशहर्षिता ॥ | .... | ६५ | |
१७ | तां पुनर्भेदयामास मन्थरा बहुधा तदा । | .... | ६७ |
न चचाल तथाऽप्यस्याः कैकेय्या हृदयं तदा ॥ | .... | ६९ | |
१८ | पुनस्तां भेदयामास भयमुत्पाद्य मन्थरा । | .... | ७१ |
किं नु कैकेयि ? संप्राप्तं अनर्थं नावबुध्यसे । | .... | ७३ | |
१९ | बालिशे ! भरतं हन्यात् राजा रामो न संशयः । | .... | ७५ |
दासीवद्वर्तितव्यं स्यात् कौसल्यायां त्वयाऽपि च ॥ | .... | ७७ | |
९ | |||
२० | शृण्वन्त्याः सकलं वाक्यं चचाल हृदयं शनैः । | .... | ७९ |
रामप्रवासनोपायं मन्थरा समुपादिशत् ॥ | .... | ८१ | |
२१ | देवि ! राज्ञा पुरा दत्तं याचस्वाद्य वरद्वयम् । | .... | ८३ |
रामप्रवासनं, देवि ! याचस्वाद्येन चैतयोः ॥ | .... | ८५ | |
२२ | अपरेण च याचस्व भरतस्याभिषेचनम् । | .... | ८७ |
आत्मानं भरतं चैव रक्षस्व महतो भयात् ॥ | .... | ८९ | |
२३ | एवं विदर्शिताऽगृह्णात् कैकेयी मन्थरावचः । | .... | ९१ |
मेदिनीमधिशिश्ये सा दुःखिता कुपिता भृशम् ॥ | .... | ९३ | |
१० | |||
२४ | ततो विवेश तद्द्वेश्म हृष्टो दशरथः स्वयम् । | .... | ९५ |
न्यवेदयत् प्रतीहारी राज्ञे क्रुद्धां तु कैकयीम् ॥ | .... | ९७ | |
२५ | भूमौ शयानां कैकेयीं अपश्यत् तत्र पार्थिवः । | .... | ९९ |
अनुनीता च सा राज्ञा वाक्यं दारुणमब्रवीत् ॥ | .... | १०१ |