पृष्ठम्:श्रीमद्बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् (सुबोधिनीटीकासहितम्).pdf/७०८

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बृहत्पाराशरहोरोंचरभागे- प्रकाशते ॥ ११ ॥ उद्यानस्यैकवृक्षाचः परे हैमवते द्विज ॥ क्रीडती भूषितां गौरी शुक्कवस्त्रां शुचिस्मिताम् ॥ १२ ॥ देवदारुवने तत्र ध्यानमस्तिमितलोचनम् ॥ चतुर्भुजं त्रिने- जटिलं चंद्रशेखरम् ॥ १३ ॥ शुकवर्णे महादेव घ्या- येत्परममीश्वरम् ॥ द्विविधं गणितं ज्ञात्वा शाखास्कंधं वि- टीका | •श्यकत्वमनेन दैवज्ञत्वं ज्योतिषिकत्वं प्रकाशते विराजते मश्नकवनपावं प्र वर्धते इत्यर्थः इति ॥ ९ ॥ १० ॥ ११ ॥ अथ ध्यानमाह उद्यानस्येत्यादि- साईदयेन । उद्यानरय आरामस्यैकवृक्षाधः मुख्यवटवृक्षाधोभागे हेमवते हि- परे उत्कृष्टे आसने इति शेषः भूषिताम लंकृतां शुक्लपक्षांशु- चिस्मितां गोरी कीती घ्यायेत् तत्रोपवने ध्यानस्तिमितलोचनं घ्यानेन निमीलितहाट त्रिनेत्रं चतुर्भुजं जटिलं जटाधारिणं चंद्रशेखर भालचंद्र शु कुवर्ण परमं सर्वोत्तमं ईश्वरं सर्वनियंतारं महादेव सर्वदेवश्रेष्टं दीव्यति मका- शयति सर्वेद्रियादीनिति देवः महांचासो देवश्च महादेवस्वेषां सर्वेषामपि श्रेष्ठ परब्रह्मेति भावः एवं ध्यायेदिति ॥ १२ ॥ १३ ॥ अथ गणकाधिकार- भाषा | नियोगः || " ऐसा विनियोग पढके पीछे में यह बीजसे अंगुष्ठादिक न्यास हृव्या- दि म्यास करना. हे मैत्रेयां यह दोनों मंत्रके पुरश्चरण करने से निर्मल बुद्धि और ज्योतिषका यथार्थ ज्ञान प्रकाशित होवेगा ॥ ५ ॥ १० ॥ ११ ॥ ऐसेन्यास करके पाछे शक्तिशिवका ध्यान करना सी कहते हैं. हिमालय पर्वतके ऊपर एक बड़ा बगीचा है उसमें एक घटका झाड है. उसकी छायानीचे उत्तम आसन के ऊपर बैठे हुवे शोभायमान, सुपेद वस्त्र जिनाने पैरे हैं, और पवित्र हास्यसहित जिनका मुख क्रीडा कर रहे हैं, ऐसी गौरीका ध्यान करना, और ओई बगीचे में ध्यान करके जिनाने दृष्टिमीच लिये हैं, तीन नेत्र चार सुजा है, जटा धारण किये हैं, जिनके मालमें चंद्र सुशोभित हैं, श्वेत जिनका वर्ण है, सबके नियंता, सर्वोत्तम, सर्वदेवमें श्रेष्ठ ऐसे साक्षान्महादेव परब्यक्ष है ऐसा ध्यान करना ॥ १२ ॥ १३ ॥ अब ज्या