पृष्ठम्:श्रीमद्बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् (सुबोधिनीटीकासहितम्).pdf/४८५

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पादिवर्णनामावः ९० भाषा। करना होवे तो ओ ग्रह मूल त्रिकोणका होने तो उसका ४५ लेना स्व राशिका होवे तो तीलका बल लेना, अधिमिश्रका होवे सो बीसका बल लेना, मित्रका होवे तो पंधराका बल लेना, समस्थानका होवे तो इसका मट शत्रुका होघे तो चारका बल लेना, अधिशत्रुका होबे तो दोका बल लेना ॥ # नं. : म. घं. मं. सू.पु. स. नं. .... | न. ...श. बु. श. मं. शु. ध..श. D 0 चं. a सू CRE १३ श A स्व. 6 १२० ११ १२ १० यु.गु. श. श. क्य.मि.मि... मि. स्त्र. श. ४ ५ ४ ४ ४ ४ स्व.स्व.मि. .मि. मि. 19 4 श. 31 श स्व. E- 9 d शु. मं. पं. अथ पंचया मैत्रीचक्रम्. गु. G His s जय समवर्गचक्रम् चं. मे... |..श.प्र. → ६ १२ २.७.५ शु.ग्र. जू. शु. श्र. स. मि. मि. श. मि.मि. स. ८ २:३ २० .मं. शु. बु. गु.श. द्रे. स. मि.मि. झ.मि. एम. १२ ६.१३६ १२ गु.. श. बु. मि.श. स्व. श. मि. ३३ V १० २,५२ मु. शु..शु.. शु. मं. मि.मि. स्व. 1 R श, ★ 50 <*

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