पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२७९

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२१४ प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका पादौ प्रसार्य ये गेहे १२१ व पु 45 पूजनं चार्घ्यपुष्पाद्यै ४९ ज स 22-76

पादौ हस्तौ प्रसायैव ११५ वै शा पूजनीयमथान्येन १४ पा सं (च) पापक्षयश्च भवति १६५, १७४, 19 (१) वि पु 1-17-78 पूजयित्वा जगन्नाथ १७५ अ ब्र(ना) पापराशि दहत्याशु १७३ 2-40 पारुष्यमनृत चैव १४९ म 12-6 पूजयेद्द्विज तत्रापि ३६ पार स पालयित्वा स्वसङ्कल्प १५७ व 498 10-317 ० पाषण्डादिभिरालाप ११३, १२५ ना मु पूजार्थमस्रमन्त्रेण १२८ सा स 21.24 पाषण्डावेक्षणादीनि १२४ वं 82 पूजाविधौ भगवतस्ते ४६ पा सं (च )

                                                    1 4
        पि                 पूजाविधौ भगवत ४७, पा स (च)1-10

पिण्याक भक्षयित्वा तु १४५ व पु पितृदेवमनुष्याणा ७३ द स्मृ 2-46 पूजिता विधिना यत्र १२ पार स (प्रा) पितृणामपराहे तु ७० द स्मृ 2-27 19-177 पिबेत् पादोदक विष्णो १२२ व पु 45 पूज्यते यदि संमोहात् ३२ का

          पु                      पूरयत्विति संप्रार्थ्य ९३. वं 38

पुण्डरीकसहस्रात्तु ५० म भा (आश्व) पूर्वमागमसिद्धान्त ३१ का 104-74 पूर्ववत् स्रपन कृत्वा १६ ना पुन पुन प्रणम्याथ १५२ ना मु पूर्वश्रवानुश्रवभेदभिन्न ५ भो, ब पुन प्रणम्य देवेश १५२ ना मु पूर्वोक्तषु निमित्तेषु ८३ पुन प्रतिष्ठा कर्तव्या १८ पार सं (प्रा) पूर्वोत्तराशाभिमुख १०९ 19-558 पृ पुरीष वा प्रकुर्वीत ११९ व पु 45 पृथकर्मवशात् कार्या ४७ ज स 22 66 पुरुष तु तत सत्य २४ म भा (आश्व) पृथग्भूतेषु दृष्टषु १५९ म भा 104-86 पृथिवी प्रियदत्तेति ९७ वि व 69-109 पुष्पाणि फलमूलानि १२९ पा स (च) म भा (आनु) 142-59-61 13-31 पृष्टीकृत्यासनं चैव १२३

पू पूजन प्रयतै कार्य ३५ का पौ

                         पौरुष चारविन्दाक्ष २९ सा स 22-50