पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२८०

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प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिक २१५ प्रथम मन्त्रसिद्धान्त ९ पा सं (च ) 19-112 प्रकारैक्ये च तत्त्वव्यवहारः ८५ श्री भा प्रथमे कल्पने सैव १६ पा म (च) (जिज्ञासाधिकरणे) 17-30 प्रक्षालनाद्धि पङ्कस्य १४३ म भा (आर) प्रदक्षिणनमस्कारे १०९ पि 2-48 प्रदक्षिणप्रणामादि १५ पा स (च) प्रज्वाल्य वह्नि विधिवत् ६० व्या स्मृ 3-2 21-52 प्रणमेत् पुण्डरीकाक्ष १२५ ना मु प्रदक्षिणमकुर्वस्तु १२० व पु 45 प्रणम्य चैव गुर्वादीन् १५४ व 465 प्रददाम्यचिराद्यद्वै ४९ ज स 22-81 प्रणम्य दण्डवद्भदूम्या १५६ व 487 प्रदानमम्बुसिक्ताना १२९ सा स प्रणम्य स्मारयेद्देव १५७ व 490 21-32 प्रणाम सपुट स स्यात् ११४ वै शा प्रदोषपश्चिमौ यामौ ७६, १५० द स्मृ प्रतापभूपरचित ११७ 2-59 प्रतिग्रहीतृभिश्चैव १३५ शौ प्रद्युत्रं चानिरुद्ध च २५ म भा (आश्व) प्रतिग्राह्यमथान्योन्य १९ पार स 19-585 104-88 प्रतिपत्पर्वषष्ठीषु १०३ व्या स्मृ प्रद्युन्नाय नमस्तेऽस्तु ९५ पार स 2-6 प्रतिपदमवधान १८० पा र प्रभूतानि विशुद्धानि १२७ ना मु प्रतिपादिकया विष्णो ११२ ना मु प्रमादादपि कीलाल १२३ प्रतिबुद्धा न सेवन्ते ६४, १४० म भा प्रयत परया भक्त्या १११ व 73 (शा ) 350-36 प्रयत परया भक्त्या पूर्व १५३ व 456 प्रतिलोमभुवा सूत ४६ पा स (च) 1-5 प्रयुक्तैरप्रयुक्तैव ५९ शा स्मृ 5-19 प्रतिष्ठादौ कृते मोहात् २७ पा स (सर्वेन्द्रियै प्रयुतैर्वा-मुद्रितशाण्डिल्य 19-129 स्मृतिपाठ ) प्रतिष्ठाप्य च तेनैव १८ पार स (प्रा) प्रलीनमूर्तिर मल ८५ सा स्म 6-212 19-555 प्रव पान्तमन्धसो धिया ६५ ऋ, शौ सू प्रतिष्ठाप्य सहस्त्रेण २७ पा मं 119-130 2-21 1 2 प्रत्ययार्थ च मोक्षस्य ९ प्रविश्य स्वाश्रम देव १२६ पा म (च) प्रत्येक मृत्तिकामात्रा ९८ पा स (च) 13-28 13-16 प्रवेशे निर्गमे चैव ११४ प्रथमयुगसमग्र ५५. पा, र प्रशंसकं वै सिद्धीना २९ सा सं. 22-51