पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२७८

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प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका 213 पञ्चमे तु तथा भागे ७३ द स्मृ 2-46 पञ्चमो योगसंज्ञोऽसौ ४८ ज स 22-74 पञ्च वामकरे देया ९९ पार स 2-44 पञ्चरात्रमहाम्भोधेि १ पा र पञ्चरात्रस्य कृत्स्न्नस्य ४३, म भा (शा ) 359-68 पञ्चरात्रस्य कृत्स्रस्य प्रसूति १० पा र पञ्चरात्रोदितान् वापि २१, ७७ पञ्चविशापराधं त १४६, व पु पञ्चापाने मृत्तिका. स्यु १०० पार स 2-47 पञ्चैते विवयस्तेषा ५० पा स (च) 13-4 पत्युरसामञ्जस्यात् २७ शा मी 2-2-35 पत्र पुष्पं फल तोय १७४, भ गी 9-26 श्रीभाग 10-81-4 पत्रेक्षितो वा व्यर्थ स्यात् ९३ पा स. (च) 23-81 पत्रेषु पुष्पेषु फलेषु १७४ पत्रै पुष्पै फलैर्वापि १२४. व 88 पथि पादस्तत प्रोक्त ९९ आप स्मृ पथि शौच प्रकर्तव्य १०० पार स 2-52 पदं नारायणायेति १५४ व 463 पदयोरर्चन कर्तु ५३, ९१ वं 33 परमात्मनि यो रक्त १४० बार्ह परमात्मानमात्मान १०९ पि परव्यूहादिभेदेन १२ पार स (प्रा) 19-575 परस्मिन् व्यूहाख्ये १६२ पा र पराङ्मुखाना गोविन्दे १४० वि ध 99-13 पराराधनरूपेण १२४ व 85 परार्थयजनं कुर्यु ४६. पा स (च) 1-8 परार्थ कर्म कुर्वाणा १६८ परावर्त्य शत बुद्धया ८४ सा स 6-206 परिज्ञातैस्तु यै सद्य ४७ ज स 22-67 परिधायैकवस्त्रं च १४४ व पु परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ९० मु 1-2-12 पर्यन्तलोकास्त्विह ७७ र आ पलाशवेणुखदिर १०२ पा 'स (च ) 13-17 पश्चाद्वाहुद्वयेन प्रतिभट १३१, १८० पा र पश्चाद्भागेन निर्गच्छेत् ११४ शा स्मृ पश्चिष्टिदर्विहोमाना ६० श्री कृ पयाभ सह तजन्या १०१. पार स 2-61 परदारतश्चैव १४१ परदारोपसेवा च १३६ म 12-7 परप्रापणकेनैव १४६. व पु.

           पा

पाणिना क्षालितेनैव १०१ पार स 2-57 पातकान्याशु नश्यन्ति ११७ शा स्मृ 2-90 पातृत्वेन प्रसजति तदा २ आ प्रा पादप्रसारण चाग्ने १२२ पादाङ्गुलिभ्या जानुभ्या ११४ वै शा पादाभ्या तिसृभि शुद्धि १०० पार स 2-48