पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२७७

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२१२ प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका नित्यं भगवत पूजा १७५ अ ब्र (ना) नृसिहकपिलकोड )१२ पार स (प्रा 2-42 19-576 नित्य राष्ट्रभय कुर्यात् १७५ ने नित्य विष्ण्वर्चन परं १७३ शौ सू नेदविदनिदंविदा ७५ ब आ 1-2-21 नेह कालक्रियाकर्तृ १७८ वं 512 निदध्यात् स्व च कर्तृत्व १५५ व 473 निधित्सन्निव चक्षु स्व १५७ व 491 नियोजयेत्ततो विप्र १०० पार स 2-48 . नेवाधिकारिणो गौणा ४६. पा स (च) नै निरञ्जन परम साम्यं ८५ मु 3-1-3 निरुध्य स्व चित्त १६२, पा. र नैवाभ्या सदृशो मन्त्र ६४ व्या स्मृ निर्गन्तुकामो निक्षिप्य १५६ व 488 2-44 निर्दोषता प्रयान्त्याशु १२९ सा स 21-33 नैवेद्यहीने दुर्भिक्ष १७५ निर्भय सर्वभूतेभ्य १५ वं 471 निर्मलानन्तविज्ञान १७९, व 522 न्य निर्वाह क्रियते तद्वत् ३ श्री कृ न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थ १०२ पा स (च) निवेदयीत स्वात्मानं ६४ व्या स्मृ 2-45 13-17 निवेदितस्य यद्दान ४९. ज स 22-78 न्यस्य कर्तत्वभोत्कृत्वे ११२ व 76 निषेकादीश्च सस्कारान् २१ न्याय्यस्तस्य करछेद ११५ श्री. भा निषेधाविषयीभावात् १४२, १७८ वं 10-22-22 513 न्यासेन देवमन्त्राणा ८६ निष्ठीवनफरो यस्तु ११९ व पु 45 निष्फला च क्रिया तस्य १५ पा सं (च) प 21-78 पञ्चकालविधिज्ञाना ५० पा स (च )

                                          13-1

पञ्चकालव्यवस्थित्ये ४४ पा र नीत्वोपादानसमय १३० पा सं. (व) पञ्चकालास्त्वयोद्दिष्टा ४७ ज स 13-34 22-65

     नृ                        पञ्चकालैकमनसा ५१ (जितन्ते) 33

नृणा नरपतेश्चापि १६. पा स. (च) पञ्चदशापराधं त १४५ व पु 17-32 पञ्चमं त्वपराधं च १४४ व पु