पृष्ठम्:श्रीपाञ्चरात्ररक्षा.djvu/२६४

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्

प्रमाणवचनादीना वर्णानुक्रमणिका 199 एवमेकदिन वापि १७७ व 504 कनिष्ठामूलमारभ्य १०८ सा स एवमेव समभ्यासात् ८५ सा स 6-209 कमण्डलुस्थितेनैव ८२, ८३ सा स 6-194 एवं गुरो समारभ्य १५१ वो एवं नानागमाना च ७ पौ स 38-302 कम्बलावरणं चैव १२२ ई 6-85 (2) एवं प्रक्षाल्य विधिवत् १०१ पार स्म 2-58 कराङ्गुलिशरीरेषु १५३ वं 457

कर्तव्यत्वेन वै यत्र ६, पौ सं 38-293 एव शरणमुपगम्य ५७' नि रा• कर्तव्य स्नपनं कुर्यात् ११ पा स (च )19-127 एवं सचिन्त्य मन्त्रार्थं ५४ भ नि एवं संप्रतिपन्नाना १४७ मा स 2-12 कर्ता कारयिता चोभौ १५ प स (च)21-78 एष मे सर्वधर्माणां ११७ वि स एषितार तदिच्छा वा १७८ वै 5-13 कर्मणामपि सन्यास ९, १० पा म (च ) 19-117 कर्मेणा परिपाकत्वात् ६४ श्री भा 11-19-18

ऐकान्तिकात्यन्तिकतत्परिचयैक १५९ वै ग कर्मण्यवसिते तस्मिन् १५५ वं 472 कर्मवाङ्मनसे सम्यक् १४७ सा स 2-11

ओ नमो वासुदेवाय ९५ पार स 2-5 ओपूर्वया च गायत्र्या ११० पा स (च) 13-23 कर्माण्यनन्तान्यच्छेद्यानि ९३ व 37 कर्मारम्भेण मन्त्रेण १३८ कर्षणादिप्रतिष्ठान्त ४६ पा स (च) 1-1 कलेर्दोषनिधे राजन् (अत्यन्तदुष्टस्य

कलेरय-इति वि पु) ११७ श्री भाग 12-3-51, वि पु 6-2-40
           क

क इति ब्रह्मणो नाम ९७ ह व 88-47 कण्डूला कलिकज्जलाविल १८१ पा र कथं त्वमर्चनीयोऽसि २४ म भा (आश्च) 105-83 कलौ कृतयुग तस्य १७१ वि व 109-57 कथाया कथ्यमानाया १२० व पु अ 45 कलौ सकीत्र्य केशवम् ११७ वि पु 6-2-17 कथित पञ्च के काला ५० पा स 13-1 कथ्यते यत्र तत् प्रोक्त १० पा स (च) 19-115 कल्किन् विष्णो नमस्तेऽ स्तु ९५ पार सं 2-13 कदा द्रक्ष्यति मा पति १६० रामा (सु) कल्पकोटिशतैश्चापि १४१ क्र