पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/४

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संस्करण के सभी अशुद्ध पाठों को बहिष्कृत करने और उनके स्थान पर शुद्ध तथा उपयुक्त पाठ रखने में ये सफल हो गए।

 इस संस्करण में अत्यन्त अनूठे ढंग से सरल तथा सुबोध हिन्दी-टीका दी गई है। उपयोगी और महत्त्वपूर्ण पाद-टिप्पणियों ने सोने पर सुहागे का काम किया है। इसकी प्रशंसा के संबन्ध में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। केवल इतना कहना पर्याप्त होगा कि यह पुस्तक स्वामी जी की पहले प्रकाशित की गई सभी पुस्तकों की तरह अधिक उपयोगी होगी। पाठक इस बात का स्वयं अनुभव करेंगे।

 स्वामी जी के पिछले प्रकाशनों का जैसा आदर हुआ, वैसा ही, बल्कि उससे. भी अधिक आदर इस ग्रन्थ का भी होगा, ऐसी पूर्ण आशा है ।

जिया लाल कौल