पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/३

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प्राक्कथन

 श्री स्वामी ईश्वर स्वरूप जी ( ब्रह्मचारी लक्ष्मण जी ) ने आध्यात्मिक तथा साहित्यिक जगत में ऐसी अमर ख्याति प्राप्त की है कि उनके विषय में किसी परि- चयात्मक बात के कहने का साहस करना दिवाकर को दोपक दिखाने के समान होगा। स्वामी जी उच्च कोटि के महात्मा, सफल योगी, संस्कृत के धुरंधर विद्वान् , प्रकाण्ड पण्डित तथा सिद्धहस्त लेखक और अद्वैत-शैव-दर्शन के पारंगत हैं। कहना न होगा कि कश्मीर-शैव-शास्त्र-सागर को गहराई में पड़े हुए बहुमूल्य रत्नों का सर्वोत्कृष्ट पारखी कहलाए जाने का गौरव यदि आजकल किसी को प्राप्त हो सकता है, तो वह स्वामी जी ही हैं।

 'शिवस्तोत्रावली' का पहिला संस्करण चौखम्बा संस्कृत सीरीज कार्यालय वाराणसी से आज से लगभग साठ वर्ष पहले छप चुका था, पर वह अब बहुत वर्षो से अप्राप्य हो गया है। तब से इसके दूसरे संस्करण की जो मांग चली आ रही थी, वह अब उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। उसी मांग की पूर्ति के लिए यह संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है।

 पहला संस्करण केवल एक ही हस्तलिखित प्रति के आधार पर प्रकाशित किया गया था। उसके संपादक को अन्य हस्तलिखित प्रतियों आदि के रूप में कोई भी वांछनीय सुविधा उपलब्ध न थी। फलतः उस संस्करण में बहुत सी अशुद्धियाँ रह गई थीं।

 स्वामी जी ने अपनी प्रमुख शिष्याओं ब्रह्मचारिणी शारिका देवी तथा प्रभादेवी के अनुरोध से इस ग्रन्थ का जो अत्युत्कृष्ट संस्करण तैयार किया है, वही अब प्रकाशित किया जा रहा है। स्वामी जी ने भिन्न भिन्न स्थानों और सजनों से इसकी पाँच-छः हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त करने का प्रशंसनीय उद्योग किया। इनमें से चार तो अपेक्षाकृत बहुत शुद्ध थीं। इन्हीं चार प्रतियों के आधार पर इन्होंने कष्ट-साध्य परिश्रम करके शुद्ध और उपयुक्त पाठों की पूरी जांच की। परिणाम स्वरूप पहले


१. स्वामी जी के शिष्य तथा भक्त इनको इसी प्रिय नाम से पुकारते हैं ।