पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/३६०

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- पश्यन्ति = समझते हैं, तेभ्यः = उन को श्रीशिवस्तोत्रावली नमो नमः = बार-बार ( मेरा ) नम- स्कार हो ॥ १० ॥ एकान्तद्वादशान्तादिपदं परमलोकं चागत्वा, भोगानधरभूमी: शरीरं चात्यक्त्वा इदमेव - अप्रबुद्धानां हेयाभिमतं भव्यं त्वद्धाम - चिद्धनं ये पश्यन्ति, भव्याः - दिव्य महार्थदृष्टचाविष्टास्तेभ्यो नमो नमः; वीप्सयैषा- मेव परतत्त्व वित्त्वं ध्वनति ।। १० ।। - भक्तिलक्ष्मीसमृद्धानां किमन्यदुपयाचितम् । एतया वा दरिद्राणां भक्ति- = ( स्वरूप समावेश-मयी ) भक्ति रूपिणी लक्ष्मी = लक्ष्मी से - समृद्धानां = संपन्न ( भक्तों ) के लिए अन्यत् = और किम् = क्या - उपयाचितम् = मांगने योग्य है ? (और किसी वस्तु की इच्छा नहीं रहतो । ) पतया वा दरिद्राणाम् = और किमन्यदुपयाचितम् ॥११॥ जो इस संपत्ति से रहित हों, (जिनको ऐसी भक्ति रूपिणी संपत्ति प्राप्त न हो ), उनके लिए - - अन्यत् = ( ऐसी भक्ति के सिवा ) और किम् = क्या उपयाचितम् = मांगने योग्य है ? ( अर्थात् वे इसी को चाहते हैं ) ॥ ११ ॥ किमन्यदिति – प्राप्तव्यस्य प्राप्तत्वात् नास्त्येव अन्यद्याचितव्यम् । किमन्यदिति – परमार्थस्यानासादनात् किमन्येनासारप्रायेणेत्यर्थः ||११||

  • अप्रबुद्ध योगी-जन संसार और इस के क्रिया-कलाप अर्थात् विविध

कार्यों को त्याग कर जंगल जाते हैं और वहाँ भगवान् की खोज करते हैं, पर फिर भी सफल नहीं होते । किन्तु समावेश-शाली भक्त-जन इसी दुःखालय जगत् को भगवान् का जीता-जागता तथा जाज्वल्यमान स्वरूप समझते हैं और इसी के बीच में रहते हुए तथा सभी लौकिक कार्यों को करते हुए वे भगवान् के साक्षात्कार का आनन्द लूटते हैं ॥ १० ॥ १ क० पु० एनया - इति पाठः । -