पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/२८८

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२७४ श्रीशिवस्तोत्रावली %3D % समता है % सदा = सदैव (प्रभो - हे स्वामी!) एषां और इन भक्तों को भक्तानां = भक्त-जनों के लिये त्वदू- = आपकी समता = ( दिन और रात की) भाव- = ( समावेशात्मक ) भक्ति के रस- = रस रूपी सार- = सार जिसका, ऐसा पीयूष-रसेन = अमृत-रस से विषुवत्-* = विषुवत् नामक समय:: समय अर्चन = ( वह विषुवत्-कालीन ) पूजा सदा-सदा (ही) (भवति = हुआ करती है ) ॥ ५ ॥ ( अस्ति= बना रहता है ) विषुवति पूजा कर्त्तव्यत्वेनाम्नाता, स च विषुवत्समयः शिवैक्यप्रथा- त्मसमतासारो भक्तानां सदैवास्ति, तथा त्वद्भावनारस एव पीयूषरसः, तेन सदैषामचनमस्ति ॥५॥ 7 - यस्यानारम्भपर्यन्तौ न च कालक्रमः प्रभो। पूजात्मासौ क्रिया तस्याः कर्तारस्त्वज्जुषः परम् ॥६॥ प्रभो हे प्रभु ! (मध्येऽपि = बीच में भी) यस्य%3 जिसके काल-क्रमः= समय का क्रम अनारम्भ-पर्यन्तौ आदि तथा अन्त न (अस्ति) = नहीं होता, नहीं होते और पूजात्मा - (समावेशात्मक) पूजा की % असौ = वही

  • [ क ] ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य विषुवत् रेखा पर पहुँचता है तो

दिन और रात दोनों बराबर होते हैं। उसी समय को विषुवत्-काल कहते हैं। ऐसा समय वर्ष में दो बार आता है, अर्थात् ६ चेत और ६ असूज को । शास्त्रों में कहा गया है कि वह समय बड़ा पवित्र होता है और उस समय अवश्य विशेष रूप से पूजा करनी चाहिये । [ख] भावार्थ-हे भगवान् ! आपकी समावेशात्मक भक्ति करने वाले भक्त तो हर समय आपकी विशेष पूजा में लगे रहते हैं। अतः उनके लिये तो प्रत्येक समय ही विषुवत् होता है। उनके लिये पूजा का कोई विशेष समय निश्चित नहीं किया जा सकता।