पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/२५३

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भक्तिस्तोत्रनाम पञ्चदशं स्तोत्रम् २३९ नाथ ते भक्तजनता यद्यपि त्वयि रागिणी । तथापीर्ष्या विहायास्यास्तुष्टास्तु स्वामिनी सदा ॥११॥ - नाथ = हे स्वामी ! = आपकी ते रागिणी ( अस्ति = है ), तथापि = तो भी

  • भक्तजनता = भक्त-जनता ( रूपिणी विहाय = छोड़कर ( अर्थात् इस भक्त -

- स्त्री ) - यद्यपि = त्वयि = आपके प्रति यद्यपि जनता को आपसे मिलने का अवकाश देकर ) = अनुरक्त स्र्थात् पार्वती ईर्ष्याम् = ईर्ष्या तुष्टाः स्वामिनी = ( परा-शक्ति रूपिणी ) अस्तु * = रहे ॥ ११ ॥ - अस्याः = इस पर सदा = सदा प्राप्ते = प्राप्त होने पर भवत्- आपके साथ भक्तजनता रागिणी -नायिकेव | ईर्ष्या त्यागः - अवकाशदानम् | तुष्टा — विकसिता । स्वामिनी-~-पराशक्तिरिति प्रकृते । अप्रकृते तु स्वामिनी - महादेवी ॥ ११ ।। = = प्रसन्न भवद्भावः पुरो भावी प्राप्ते त्वद्भक्तिसम्भवे । लब्धे दुग्धमहाकुम्भे हता दधनि गृध्नुता ॥ १२ ॥ - भावः = एकात्मता (अर्थात् आपके स्वरूप का लाभ ) भक्ति- = (समावेश रूपिणी ) भक्ति का पुरः - भावी = अवश्य होता है; संभवे = संयोग ( प्रभो = हे भगवान् ! ) त्वद् - = आपकी - = ( यथा = जैसे ) दुग्ध- = दूध का महा- = बड़ा

  • शब्दार्थ - जनता = लोगों का समूह अर्थात् लोग। यह एक स्त्रीवाचक

शब्द है ।

  • भावार्थ – हे प्रभु ! मेरी यही लालसा है कि मुझ जैसे जो लोग आप

के अनन्य भक्त हैं, वे आपके शक्ति-पात रूपी अनुग्रह के पात्र बन जाएं।