पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/२३१

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जय = आप की जय हो । भक्तिमत्- भक्त-जनों से आबद्ध = बंधी हुई गोष्ठी- = मण्डली में = जयस्तोत्रनाम चतुर्दशं स्तोत्रम् २१७ नियत- = नियत रूप से ( अर्थात् सदा) सन्निधे = उपस्थित होने वाले - स्व = अपनी इच्छा- - अधराङ्गं – पादस्तत्स्पर्शेन पवित्रीकृतं गोकुलं येन भ॑वता वृषभवाह- नेन । यतो वृषभः पद्भ्यां स्पृष्टस्ततः सर्वत्र गोजाते: पवित्रत्वमविगी- तम् | भक्तिमद्भिः आबद्धायां गोष्ठयां नियतः- अवश्यंभावी सन्निधिर्यस्यै || विनोद के लिए ) जय स्वेच्छातपोवेशविप्रलम्भितबालिश । जय गौरीपरिष्वङ्गयोग्यसौभाग्यभाजन तपः- = वेश- • की गयी तपस्या और जय = आपकी जय हो । = इच्छा से ( अर्थात् अपने गौरी- = (पराशक्ति रूपिणी) गौरी के जय ● ( भक्तवत्सल, आशुतोष ) 1 आपकी जय हो ॥ ८ ॥ -

( उसके अनुकूल जटा-आदि-

- मय ) वेश से विप्रलम्भित-बालिश = मूर्ख अर्थात् ज्ञानी लोगों को धोखा देने वाले ( जटिल ) ! ॥ ९ ॥ परिष्वङ्ग- = आलिंगन के योग्य- योग्य सौभाग्य - = सौभाग्य के भाजन = पात्र, ( उमाकान्त, गौरीशङ्कर ) ! जय = आप की जय हो ॥ ९ ॥ १ ख० पु० भगवता - इति पाठः । - २ ख० ग० पु० वृषवाहनेन - इति पाठः । ३ घ० पु० यत्र- - इति पाठः ।

  • [ क ] भगवान् के जटाधारी तपस्वी बनने की बात से अज्ञानी लोगों को

पाँचवें सिर को यों धोखा मिलता है । कुछ लोग समझते हैं कि ब्रह्मा के काटने से होने वाले पाप का प्रायश्चित्त करने के लिये ही भगवान् शंकर तपस्वी बने । औरों का विचार है कि सिद्धि प्राप्त करने के लिये उन्होंने ऐसा वेश धारण किया । अन्य लोग कहते हैं कि यही तो महादेव का सच्चा अर्थात् असली रूप है । किन्तु ये सब बातें गलत हैं। चिदानन्दघन शिव के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता । बात यह है कि भगवान्