पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/२३०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

श्रीशिवस्तोत्रावली अक्षय = सदा बनी रहने वाली सदा = सदा (मनामक ) एक- = एक शीतांशु-कला- = चन्द्र कला के सदृश = योग्य (अ) संश्रय = आश्रय, ( शशिशेखर ) ! जय = आप की जय हो । गंगा गंगा से = अक्षयायाः—अमानाम्न्या: एकस्याः शीतांशुकलायाः सदृश:- अनुरूपो भगवानेव संश्रयः, तस्याध्यक्षयैकरूपत्वात् । चन्द्रकलया हि भगवतः एतत्परमार्थतैव सूच्यते । गङ्गया सदा आरब्धं विश्वैश्वर्येऽभि - षेचनं यस्य; तत्सूचिकैव ह्यसौ ।। ७ ।। अधर - अङ्ग- = ( अपने ) • आरब्ध = किया जाता है, विश्व- = जगत् के ऐश्वर्य - = ऐश्वर्य (अर्थात् सर्वतोमुखी कल्याण ) के लिए, अभिषेचन = ऊपर से जल डाल कर जयाधराङ्गसंस्पर्शपावनीकृतगोकुल । जय भक्तिमदाबढुंगोष्ठीनियतसन्निधे ॥ ८ ॥ निचले (अर्थात् चरणों ) के स्नान जिस का, ऐसे ( गंगेश ) ! " जय = आप की जय हो ॥ ७ ॥ * संस्पर्श = स्पर्श से पावनी- = पवित्र कृत- = किया है गोकुल = बैलों की जाति ( अर्थात् जगत् के सारे बैलों तथा गायों ) को जिस ने, ऐसे ( वृषभवाहन ) !

  • चन्द्रमा की सोलह कलायें होती हैं । कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिनों में इसको

पन्द्रह कलाओं का क्षय होता है । इसकी सोलहवीं कला को अमा कला अर्थात् अमावस्या की कला कहते हैं । इसका क्षय कदापि नहीं होता । भगवान् चन्द्रचूड़ इसी श्रमा कला को अपने माथे पर धारण करते हैं । चन्द्रशेखर महादेव का स्वरूप भी अविनाशी है, अतः ये कला के योग्य आश्रय कहे गये हैं । १ ख० ग० पु० अर्यमनाम्न्याः— इति पाठः । २ घ० पु० भगवत एव — इति पाठः । ३ ग० पु० विश्वेश्वर्याभिषेचनं यस्य - इति पाठः । -- ४ ख० पु० भक्तिमदारब्धेति पाठः । -