पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/१४०

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१२८ शम्भो = हे महादेव ! - पशु-जन- = तुच्छ लोगों के समान = समान श्रीशिवस्तोत्रावली वृत्ताम् = व्यवहार वाली इमां = इस दशाम् = ( अज्ञान की ) दशा को - अवधूय = झाड़ कर ( अहं = मैं ) = त्वद्भक्तिरसायनपान- क्रीडानिष्ट: तावक = आप भक्त- भक्त-जनों के उचितम् = योग्य आत्मनः = अपने रूपं व्युत्थान पतित भेदमयीम् इमामिति - स्फुटं भान्तीं दशामवधूय- निवार्य | अथ च समावेशप्रसरत्सर्वाङ्गा वधून नेनाभिभूय, तात्रकभक्तो-

– न त्वन्यस्य कस्यचिद्

रूपं - स्वरूपं, कदा आस्वादयेय-चमत्कुर्याम् ।। १७ ।। चितं -- नित्योदित परमानन्दमयम् आत्मन:- - लब्धाणिमादिसिद्धि- ( अत एव = और इस लिए ) विगलित- = नष्ट हो गए हैं = स्वरूप ( अर्थात् चिद्रूप स्वात्म- स्थिति ) का विगलितसकलोपतापसन्त्रासः । सकल = सभी = उपताप- = सन्त्रासः = भय जिसके, ऐसा कदा = कब आस्वादय = चमत्कार करूं ? 1॥ १७॥ ( प्रभो=हे प्रभु ! ) लब्ध प्राप्त की हैं अणिमा (अ आदि- = आदि ) अणिमा सिद्धिः = (अष्ट-) सिद्धियां जिसने, ऐसा रसायन = रसायन ( अर्थात् = कदासीय ( सन् = होकर ) ( मैं ) कदा = कब त्व की भक्ति- = भक्ति रूपी अमृत ) का पान- पान करने की क्रीडा- निष्ठः आसीय १. ख०, ग० पु० रसनिपानक्रीडेति पाठः । • क्रीडा में ॥ १८ ॥ 1 = लीन = बना रहूं ! ॥ १८ ॥