पृष्ठम्:शिवस्तोत्रावली (उत्पलदेवस्य).djvu/११०

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९८ ( एवं = और) - मे = मेरी चिन्मयी = चैतन्यमयी मूर्तिः = मूर्ति रांगादिमयभवाण्डक- श्रीशिवस्तोत्रावली विकल्पानां भेदप्राधान्यात् कलङ्कता । निरर्गलता - निःशङ्कता - स्वातन्त्र्यम् | मम चिन्मयी मूर्ति :- प्रमातृता, आनन्द्रसप्लुता - समावे- शानन्दोच्छलिता अस्तु ॥ ३ ॥ आप्याययतु रसैम मय-

भरे हुए

- भव- = ( इस ) संसार रूपी अण्डक- = अंडे में लुठितं = लोटते हुए मां = मुझे - = आनन्द-रस- = आनन्द के रस से - प्लुता = प्लावित लुठितं त्वद्भक्तिभावनाम्बिका तैस्तैः । अस्तु = हो जाय ॥ ३ ॥ - प्रवृद्धपक्षो यथा भवामि खगः ॥४॥ ( परमात्मन् = हे परमेश्वर ! ) अम्बिका = माता राग-आदि- = राग, (द्वेष) आदि सेतैः तैः = उन ( अलौकिक ) = त्वदू- = आप की भक्ति- = भक्ति की भावना = भावना रूपिणी रसैः = ( परमानन्द के ) रसों से = आप्याययतु = पुष्ट करे, यथा = जिस के फल-स्वरूप ( अहं = मैं ) प्रवृद्ध-पक्षः = बढ़े हुए ( आण रूपी ) परों वाला खगः = पक्षी भवामि = बन जाऊं ॥ ४ ॥ १. पूर्ण व्याख्या—जिस प्रकार पक्षिणी अंडे में लोटते हुए अपने बच्चे को रसों से पुष्ट करती है, जिस से उस के पर बढ़ जाते हैं और वह आकाश में उड़ने योग्य हो जाता है, उसी प्रकार की भक्ति की भावना राग, द्वेष आदि से भरे हुए इस संसार में फंसे हुए मुझ को परमानन्द के रस से पुष्ट करे, ताकि मैं स्वतंत्रता पूर्वक चिदाकाश में विहार करूं ॥ ४ ॥