पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सुवर्णमालास्तुतिः।
करुणावरुणालय मयि दास उ-
दासस्तवोचितो न हि भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १६ ॥
खलसहवासं विघटय घदय स-
तामेव सङ्गमनिशं भो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। १७ ॥
गरलं जगदुपकृतये गिलितं
भवता समोऽस्ति कोऽत्र विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। १८ ॥
घनसारगौरगात्र प्रचुरज-
टाजूटबद्धगङ्ग विभो।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १९ ॥