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सर्गः
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श्लोकः
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पूर्वी दिशं गतवती |
XI |
39
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पृच्छाव सा वदतेि |
VI |
41
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पृथ्वीं पृथ्वीं पयेटन् |
V |
1
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पृथ्वी जले तदपि |
X |
32
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पृष्टो बभाण |
IV |
90
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पृष्टौं मुनिः |
VIII |
100
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पृष्टों मुनीम्द्रो |
VIII |
97
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पौरा अमात्याः |
XII |
68
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पौलस्त्यपीडित |
IX |
71
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प्रकाशयन्ते |
XII |
24
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प्रक्षालतांघ्रिः |
VI |
4
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प्रक्षाल्यमानं |
IX |
93
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प्रणवाभ्यसनोंक्त |
VII |
20
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प्रणिपतन्तमुवाच |
III |
105
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प्रणिपतन् शिव |
VIII |
11
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प्रतीक्ष्यमाणे |
VIII |
106
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प्रत्यक्तमः |
VII |
16
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प्रत्यादेशि च यत्र |
VII |
145
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प्रत्येकमस्य प्रलयं |
VII |
39
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प्रथितमस्त्रमिदं |
III |
41
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प्रादुबभूवेत्थ |
XII |
57
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प्रबन्धनिर्माण |
VIII |
69
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प्रभुरपि न बिभर्ति |
VII |
138
|
प्रभुरपि खशरीर |
XI |
136
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प्रयान्त्यपूर्वं |
X |
38
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प्रसादयामास |
VI |
12
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प्रसूनवन्तं फलिनं |
VIII |
41
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प्रसूय कन्यमिव |
X |
40
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प्रस्थातुकाममनसं |
IV |
58
|
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सर्गः
|
श्लोकः
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प्रहाददैत्य |
IX |
67
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प्राच्याः प्राचीं |
XII |
32
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प्रातश्च सायमपि |
IV |
43
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प्रतिष्ठमाने दयिते। |
VI |
61
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प्रतिष्ठिपत्सुगत |
VI |
36
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प्रादात्स भिस्मक |
VI |
35
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प्रायश्चित्तं जानता |
V |
33
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प्रायाद्गृहात्स्थिर |
IV |
62
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प्रायेण नद्यः |
VIII |
23
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प्रायों नृपं |
X |
17
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प्रावृट्तोयद |
VIII |
18
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प्रावृड्यत्र समं |
XI |
153
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प्रासादमारुह्य |
IX |
51
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प्रियतमार्पित |
X |
91
|
फ
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फुलारविन्द् |
XI |
21
|
बद्धेऽपि सेतुकरणे |
IX |
12
|
ब
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बहुजलास्सारतः |
III |
7
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बहुदिनैर्बहुदेश |
XI |
80
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बह्वर्थगर्भाणि |
IV |
82
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बह्वथैदायिषु |
I |
24
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बह्वीस्समा |
IX |
77
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बाढं जये यदि |
VI |
92
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बालं तपस्यन्तम् |
II |
18
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बाले किंमेवम् |
X |
119
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बालेयमङ्ग |
VI |
63
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