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सर्गः
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श्लोकः
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निवृत्तिशास्त्रे |
V |
36
|
निवेदिते |
XII |
78
|
निसर्गदुर्ज्ञान |
IV |
84
|
निस्खस्सुजीर्ण |
XI |
60
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निस्खो भवेद्यदि |
I |
15
|
नेतीरितः किञ्चित् |
XII |
63
|
नैको मार्गे |
VII |
92
|
नैष्कम्येसिद्धयाख्य |
VII |
58
|
नो चेतेषां दर्शनं |
VIII |
139
|
प
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पक्कानि कृष्णानि |
XI |
68
|
पक्कानि पिङ्ग कपिशानि |
XI |
38
|
पक्षस्य नाशात् |
VIII |
75
|
पञ्चाक्षरं जपति |
VIII |
12
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पतन्पतन्धसौधतलात् |
V |
29
|
पतन् हनूमान् |
VIII |
120
|
पत्यावभुक्तवति |
VI |
71
|
पदार्थमेद |
XII |
44
|
परागाः प्रासूनाः |
X |
46
|
परिचरन् जननीं |
XI |
124
|
पारजनं रहसि |
VII |
125
|
परिपकमते |
VII |
19
|
परिवर्णयितुं क्षमेत |
VIII |
10
|
परोपकारव्रतिनों |
I |
35
|
पशुपतिर्मधुजित् |
VII |
126
|
पश्य नृत्यति |
X |
28
|
पाणिग्रहात् |
VI |
70
|
पाथश्चिरं |
VI |
79
|
|
|
सर्गः
|
श्लोकः
|
पितृकृता जनिरस्य |
XI |
102
|
पितृवनाविनिवास |
III |
72
|
पितृसुतगुरुशिष्य |
VII |
136
|
पित्रानुशिष्टवसुधा |
VI |
47
|
पित्रोरिव श्वशुर |
VI |
76
|
पीनस्तनस्तवकिता |
X |
76
|
पुण्डरीकपुर |
VIII |
3
|
पुण्यं गृहस्थेन |
VIII |
58
|
पुत्रास्समित्रा |
VIII |
40
|
पुत्रोंऽस्तु मे बहु |
IV |
7
|
पुमान् पुमर्थ्ं |
VII |
24
|
पुरहरेति हरेति |
VII |
129
|
पुरा गृहस्थेन मया |
VII |
65
|
पुराभवाभ्यास |
XII |
26
|
पुरा सपक्षाः |
X |
36
|
पुरेव पार्वाब्धि |
VIII |
91
|
पुरेव भोगान् बुभुजे |
XII |
70
|
परोपमन्युः किल |
II |
1
|
पुष्णाति तीक्ष्ण |
X |
111
|
पुष्पं लुनन्त्याः |
X |
59
|
पुष्पं लुनाना |
X |
52
|
पुष्पावचायात्परि |
X |
60
|
पुष्पैः शुभैः |
X |
43
|
पुष्प्यन्ति वृक्षाः |
X |
72
|
पूगारामः शुष्क |
X |
65
|
पूजां विधाय सहसा |
IX |
4
|
पूजां व्यधुः केचन |
XII |
69
|
पूर्वं गृही त्वेव |
VII |
60
|
पूर्व तथा त्रिपुर |
VIII |
135
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