पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/९

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भूमिका

उत्पत्ति और उंस के साधनादि का निरूपण हें। नवम में बुद्धि फे भेदों का प्रतिपादन है । दशम में आत्मा के गुणों क्षे भेद का प्रातिपादन है । मखेक अध्याय में दो दो भान्हिक हैं। अहिक का अर्थ है, एक. दिन का काम । अर्थात् इस दशा ध्यायी को कणाद मुनि ने २० दिनों में रचा था।

सूत्रों का ? पकणाद मुनि ने जां सूत्र रचे थे, उन में कुछ निर्णय' // न्यूनाधिकं वा पाठान्तर हुए हैं वा नहीं, और यादे हुए हैं, तो किस प्रकार अव फिर मृल सूत्रों को उसी रूप में ला सकते हैं, जिस रूप में कि मुनि ने रचे थे, इस वात का निर्णय करना अतीव भावश्यक है।

पं० विन्ध्येश्वरी प्रसाद शाम्म ने जो भूत्रपाठ छपवाया है, उस फी प्रादटीका में पाठभेद् दिये हैं, जो उन को हस्त लिखित पुस्तकों में मिले हैं। उन से यह भी स्पष्ट हो जाता है, कि न केवल पदभद ही हुए हैं, किन्तु सूत्रभेद भी हुए हैं। अब इनको कणादोक्त रुप में लाने के लिए क्या प्रयत्र होना चाहिय, पाणिनि विरचित व्याकरण छूत्रों में भी काशिकाकार ने कुछ भेद किया है, वह महाभाष्य के अनुसार ठीक हो सकता है। इसीं भकार याद प्रशस्तपाद भाष्य भी सूत्रों का व्याख्यान होता,तो भाष्य के अनुसार सूत्रों को कणादोक्त रूप में लाना सरल होता, पर भाष्य तो जैसा-पूर्व कहा है, सूत्रों का व्याख्यान नहीं। अब सूत्रों पर साक्षात् कोईभाचीन व्याख्या मिलती नहीं । शैकरमिश्रतो मथुरानाथ तर्क वागीश केशिष्यकणादकाभीशष्य था। अतएवं बहुत प्राचीन नहीं किञ्च प्रशस्तपाद् भाष्य की