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रत्नप्रभोपेते वृत्तरत्नाकरे-

रतप्रभोपेते धृतग्नाकरे

 आ-जिस जा पाद एक २ शुरु अथरवाले हैं, उसका नाम 'भी' है।

  अथ [ २ ] अत्युका ।

   म स ॥२॥

 यदि पादे शुरू स्तः तदा 'सी' नाम छग्दो डेयम् । अन्यदुदाहरणं यथा वा-'गोपीभिः शृणु मे' इति ॥२॥

 भाषा-जिसके प्रत्येक बाद में दो। शुरु हों. ठस बन्द का नाम 'ड' है ।

   व्अथ [ ३ ] मध्या ।

    मगए

    - मो नारी ॥३॥

 यदि प्रतिपाद्रमेकैको सगणो भवेत् तदा 'नारी' इत्युच्यते । (उ० ) यथा वा--गोषमां नाभिः । प्टेिंऽव्यात् इष्णं वः ॥ इति ॥३॥

 भाषा--जिसके प्रयेक पाद में एक २ मणि हो, उसका। मम 'न' होता है।

    गणः ७ ।

    रो मृगी ४॥

 रगणवेल् पावस्तदा 'मृगी' नाम छन्दः ।

 आश-जिसके चारों पादं में एक २ रगण है। अर्थात् एक १ गण से ही जिससे एक पाद की पूर्ति हो जाय ), उस छन्द का। नाम 'मृगी' है। (उ०) यथा वा

 ' स मृगलोचना । शीघका श्रीपतेः ॥ ' इति ॥४॥


    अथ [ ४] प्रतिष्ठा ।

     म० सं०

--> --     म गौ चेत् कन्या श

 यदि प्रतिपाद्ये मगणणुक अर्थात् अस्वारो गुरवः स्युः, तत्

  • कन्या' नाम छुन्द्र ।

 भाषा--जिसके प्रत्येक पाद में एक १ मगए और एक ३ गुठे हो (अर्गात बार गुरुवणं सै एक पाद बने ), वह छन्द को 'न्या’ कथन करते हैं। { • ) या - –