चूंकि हिंडोले पर झूलने वाली कामिनियों के नितम्बों के बोझे से झोंकों में इधर उधर जाने वाली झूले की रस्सियाँ न ढूँटी इसमें कामदेव की भाग्य सम्पत्ति ही कारण है। अर्थात् उन स्त्रियों के नितम्ब बहुत भारी थे और कामदेव की पूर्ण कृपापात्र थीं । अर्थात् पूर्णतया कामासक्त थीं । जनेषु दोलातॄर्लाः पुरन्ध्रीः संभूय भूयःसु ब्रैलोक्यूत्सु ।। · लक्ष्यस्य विस्तीर्णतया मनोभूरवन्ध्यपातैरिषुभिर्ववर्ष ॥१७॥ अन्वयः दोलांतरलूा पुरन्ध्रीः भूयासु जनेषु सँभूय वृिलोकयत्सु (सत्सु) मनोभूः लक्ष्यस्य विस्तीर्णतया अवन्ध्यपातैः इषुभिः ववर्षे । व्याख्या दोलासु प्रेङ्खासु तरलाश्चञ्चलाः पुरन्धीर्ललनाः (कर्म) पुरन्धी सुचरित्रा तु सती साध्वो पतिव्रता' इत्यमरः । भूयःसु बहुलेषु जनेषु कामिजनेषु संभूयैकत्रीभूय विलोकयत्सु पश्यत्सु सत्सु मनसि भवतीति मनोभूः कामो लक्ष्यस्य शरपातविषयस्य विस्तीर्णतया विशालदेशव्यापित्वेनाऽवन्ध्योऽनिष्फलः पातो लक्ष्ये वेधो येषां ते तैरिषुभिः स्वपुष्पबाणैर्दवर्ष वृष्टवान् । तत्रैकत्रीभूताः कामिजनास्ता दोलास्थिताः कामिनीवक्ष्य कामात जाता इति भावः । भाषा हिंडोले पर झूलने वाली कामिनियों को कामी लोगों के इकट्ठा होकर देखते रहने पर कामदेव ने निशाने के स्थूल अर्थात् बड़े होने के कारण अपने अमोघ बाणों की वर्षा की । अर्थात् उन झूला झूलने वाली स्त्रियों को देखने । ਰਸ :
पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् .djvu/435
दिखावट