पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् .djvu/375

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ধ্ৰুতস না। ত ভুঞ্জ। ২৭ ETT सैकड़ों योद्धाओं की तीखी खङ्गधाराओं पर घूमने से मानों जिसके चरणों में घाव हो गए हैं ऐसी लक्ष्मी, नीति युक्त कार्य करने वाले राजाओं के पास भी शरीर का पूर्ण बोझा देकर अर्थात् सर्वतो भावेन अपना पद नहीं रखती अर्थात् स्थान ग्रहण नहीं करती। अनीति युक्त कार्य करने वाले प्रमादियों के पास लक्ष्मी के निवास के सम्बन्ध में कहना ही क्या है। अर्थात् प्रमादियों के पास तो लक्ष्मी आ ही नहीं सकती । जिसके पावों में घाव रहता है वह स्वभाव से ही अपने चुटीले पांव पर शरीर का कुल बोझा देकर कभी नहीं चलता है। जख्मी पाँव वाली लक्ष्मी इसी से नीति निपुणों के पास भी अपने पांव पर शरीर का पूरा बोझा देकर नहीं रहती अर्थात् सर्वतो भावेन नहीं रहती। अवतरति मतिः कुपार्थिवानां सुकृतविपर्ययतः कुतोऽपि तादृक् । भटिति विघटते यया नृपश्रीस्तटगिरिसंघटितेव नौः पयोधेः ॥२६॥ अन्वयः कुपार्थिवानां सुकृतविपर्ययतः कुतः अपि तादृक् मतिः अवतरति यया नृपश्रीः पयोधेः तटगिरिसंघटिता नौः इव भफटिति विघटते । কথাবত্তহ कुपार्थिवानां निन्द्यचरित्राणां नृपाणां सुकृतस्य पुण्यकर्मणो विपर्ययो दुष्कृत तस्मात्पापादित्यर्थः । कुतोऽपि कस्मादपि वचोऽविषयात् तादृक् तादृशी विचित्रा خ -- - مس -------.. هسلام -- - - .A گئے ہے۔ے۔۔۔ ہے۔یہی ہے بیٹا گیی۔