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होने वाले श्री रामचन्द्र की पुन: लौट आने की आशङ्का की । अर्थात्
विक्रमाङ्कदेव के जगत् को कंपा देने वाले धनुष के टङ्कारों को सुनकर व्यर्थ ही भय से व्याकुल राक्षसों को सन्देह हुआ कि रावण के शिरों को काटने पर भी क्रोध शान्त न होने से कहीं राम ही तो फिर से नहीं लौट कर आ रहे हैं।
इति श्री विक्रमाङ्कदेव चरिते महाकाव्ये त्रिभुवनमल्लदेव विद्यापति काश्मीर कभट्ट श्री बिल्हणविरचिते तृतीयः सर्गः ।
== नेत्राब्जाभ्रयुगाङ्कविक्रमशरत्कालेऽत्र दामोदरात् भारद्वाजबुधोत्तमात्समुदितः श्रीविश्वनाथः सुधीः । चक्रे रामकुवेर-पण्डितवरात्संप्राप्तसाहाय्यक ष्टीकायुग्ममिदं रमाकरुणया सर्गे तृतीये वरे ॥ ==
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।