पूर्वमानन्दं प्रापेति भावः । स्त्रीणां लावण्यस्य पीयूषेण साम्यदर्शनादुपमालङ्कारः ।
भाषा
देवों ने, जिसमें से अमृत जैसी सारभूत वस्तु निकाल ली है, ऐसे समुद्र ने अपने तट पर घूमने वाली उस राजा की रानियों के लावण्य रूपी अमृत रस को प्राप्त कर अमृत को प्रत्यक्ष देखने का सौख्य पाया । अर्थात् अपनी गई हुई प्रिय वस्तु के फिर निल जाने पर जैसा आनन्द होता है वैसा आनन्द समुद्र को प्राप्त हुआ । जयैकरागी विजयोद्यमेषु दृष्ट्वा प्रयाणाधिमम्झुधिं यः । उत्कण्ठितोऽभूदशकण्ठशत्रु-सेतौ समस्यापरिपूरणाय ॥११३॥
अन्वय:
जयैकरागी यः विजयोद्यमेषु अम्बुधि प्रयाणावधि दृष्ट्वा दशकण्ठशत्रु- सेतौ समस्यापरिपूरणाय उत्कण्ठितः अभूत् ।
व्याख्या
जयस्य विजयस्यैवैको रागी प्रेमी विजयैकरतिर्यो नृपो विजयोद्यमेषु विजय- यात्रास्वम्बुधि समुद्रं प्रयाणस्य गमनस्याऽवधि चरमां सीमां दृष्ट्वा व्- नस्य प्रतिरोधकं मत्वा दशकण्ठस्य रावणस्य शत्रू रामस्तस्य सेतुस्तस्मिन् समस्या- परिपूरणाय राम-निमितार्धनष्टसेतोः पुननिर्माणायोत्कण्ठितः समुत्सुकोऽभूत् ।
भाषा
केवल विजय ही प्राप्त करने का प्रेमी वह राजा विजय-यात्राओं की चरम- सीमा समुद्र को देखकर रावण के शत्रु राम जी के बनाये हुए टूटे पुल वो पूरा बनाने के लिये उत्कण्ठित हुआ ।