पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९

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करते हुए वैदिक वर्णन से तुलना करते हैं तो हमें राजा के बजाय आकाशीय पदार्थों ही जान पड़ते हैं। वायुपुराण में नहुष के लड़के का नाम ययाति था उसकी रानी शुक्र की कन्या थी । दूसरी रानी का नाम शमिष्ठा था । वैदिक आख्यान से संगति मिलाते हुए जब हम इस पौराणिक आख्यान का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं तो ययाति, शुक्र की कन्या और शमिष्ठा सभी आकाशीय पदार्थ ही सिद्ध होते हैं । पुराणों मे ययाति को नहुष का पुत्र माना गया है और नहुष के पिता का नाम आयु था । यजुर्वेद (५२) में लिखा है कि "अग्ने आयुरसि" अर्थात् हे अग्नि तू ‘आयु' है । यही आयु पुराणों में उर्वशी और पुरूरवा का पुत्र माना गया है। वेदों के वर्णन के अनुसार उर्वशी ओर पुरूरवा अग्नि निर्मित सूर्य और रश्मि हैं । अतएव उनके पुत्र आयु को अग्नि होना ही चाहिए । इसका साक्ष्य ऋग्वेद (१३१११) में इस प्रकार है ‘त्वमग्ने प्रथमं आएँ आयवे देवाः अकृण्वन्" अर्थात् हे अग्नि, पहले तूने आयु को बनाया और आयु से देवताओं को। इस उदाहरण से सिद्ध होता है कि आयु नामक अग्नि से सूर्य रश्मि-उषा आदि देवता बने । आयु के पुत्र नहुष को आकाशीय पदrथ सिद्ध करते हुए ऋग्वेद (८८३) कहत है "आयातं नहपर्यन्तरिक्षात् सुवृक्तिभिः पिबाथो अर्चिना मधु ।" अर्थात् नहुष के ऊपर अन्तरिक्ष से कोई आते हैं। आगे चल कर ऋग्वेद (१०।६२१२) में लिखा है कि सूर्यो के मास दिवि में विचरते हैं जिन्हें नाहुष समझना चाहिये । नहुष के पुत्र ययाति के सम्बन्ध मे ऋग्वेद (१३११७) में लिखता है कि "अग्ने अंगिरस्वत् अंगिरः ययातिवत्' अर्थात् हे अग्नि, तुम अंगिरस् की भाँति हो और अंगिरस् है । ययाति की भाँति है । ऐतरेय ब्राह्मण (३३४) में लिखा है कि ‘ये अंगार आसन् ये आंगिरसोभवन्’ अर्थात् अंगार ही ऑांगिरस है ऊपर के वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि ययाति अंगार की तरह है। ययाति की पली शुरू की कन्या है। शुक आकाशीय पदार्थ है ही। इससे यह भी ज्ञात हो जाता है कि ययाति शुक्र की भाँति कोई नक्षत्र है । ययाति की दूसरी रानी शमिष्ठ बादलों के अतिरिक्त ओर कुछ भी नही है । वायुपुराण के अनुसार यदुतुर्वसु, पुरुदुह्य, और अनु ये पाँच पुत्र ययाति के है । इन पांचो को आकाशीय पदार्थ के रूप मे ऋग्वेद की विभिन्न बारह ऋचाओं ने स्वीकार किया है जिनके संक्षिप्त आशय इस प्रकार है १-जो विद्युत् तुर्वश में है वह सूर्य की किरणों से आयी हैं । (१।४७७) २–अग्नि से तुवंश यदु को दूर करते है। (ऋ० १३६१८) --प्रकाश से तुवंश यदु को पार करो। (ऋ० १७४९) ४-अन्तरिक्ष का मार्ग पुरु है । (ऋ० ८१०१६) ५–यदु सूर्य के द्वारा जाते हैं । (ऋ० ८६१८) ६- –हुत पदार्थों को ले जाने वाले पुरु । (ऋ० १।१२।१२) ७--अनु का घर द्युलोक है । (ऋ० ८ ६e.१८) ८–पुरु सूर्य के आश्रित हैं । (ऋ० १०ne४५)