पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०

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-—इन्द्र माया कर के पुरु बन जाता है । (ऋ० ६|४७१८) १० –दुवंश यदु को शचीपति इन्द्र पार कर देगा । (ऋ० ४३०१७) ११-जो इन्द्र और अग्नि यदु तुर्वश, त्रुह्य अनु और पुरु में है । (ऋ० ११०८८) १२–प्रातःकाल का दृष्य पुरु को प्रिय है। (ऋ० ५१८१) सूर्य सिद्धांत में तारा और ग्रहों में परस्पर योग का नाम युद्ध है । और ययाति एक तारा का नाम है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आलोचना करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि वैदिक नक्षत्रवंश को पुराणों मे राजवंश का रूप दिया गया है । अथवा नक्षत्रवंशों के अभिधानों का अनुकरण राजवंश की नामावली में किया गया है । मत्स्य पुराण के &&वें अध्याय में महाराज शन्तनु का वर्णन है । शन्तनु के दो भाई देवापि और बाक़ीक और ये । शन्तनु का विवाह गंगा नदी से हुआ था । तर्कवादी की दृष्टि में मानव का नवी से समागम और विवाह किसी भी सूरत में ग्राह्य नही वरं हास्यास्पद होता है। किन्तु जब हम प्रतीकवाद से प्रभावित रहस्यवादी पुराणों का भावार्थ वैदिक अलंकारों से समन्वित कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करते हैं तो हमें स्पष्ट ज्ञात होता है कि वैदिक आकाशीय पदार्थों के अलंकारिक वर्णनों के रहस्य पुराणों द्वारा किस चातुर्य से व्यक्त किये गये हैं । ऋग्वेद (१०८८) में शन्तनु शब्द आया है। उनके दोनों भाई देवापि और बाक्लीक का भी नाम है । ऋग्वेद के दसवें मण्डल में € ८वां सूक्त वर्षा-वर्णेन का है । इस वर्णन में शन्तनु और उनके भाइयों का रहस्य खुल जाता है । गंगा के साथ शन्तनु के विवाह का रहस्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत ही संभव और सन्देहहीन है। गंगा नदी का दूसरा नाम त्रिपथग भी है । जो जल आकाश से गिरता है उसका नाम गंगा है—जो जमीन पर बहता है वह भी गंगा है और जो पाताल पर है वह भी गंगा नाम से विख्यात है। भावप्रकाश में लिखा है–“‘गांगमासयुजे प्रायो वर्षति वारिदः। सर्वथा तज्जलं ज्ञेयं तथैव चरकेवचः । अर्थात् आश्विन के महीने में जो पानी ऊपर से बरसता है उसे 'गांगेय' कहते हैं । आकाश में जब बिजली चमकती है तो जल चक्र में एक प्रकार की हरकत उत्पन्न होती है । तब आकाशगंगा पानी के रूप में नीचे बरसती है। सुश्रुत (४६२१) में शन्तनु एक अनाज का नाम है। इस धान्य का मुख्य जीवन वर्षा है । आदिवन मास में इस इस घन्य को विशेष जल को आवश्यकता पड़ती है। उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट हो चुका कि आश्विन की वर्षा का नाम गंगा है । यह गंगा जब शन्तनु के समागम करती है तभी इसका तप्त हृदय शान्त होता है। उक्त गंगा को देवापि और आष्टिषेण (शन्तनु के भाईनामी विद्युत् और जल शक्तियाँ प्रेरित कर के नीचे लाया करती हैं। यही शन्तनु और गंगा के विवाह का रहस्य है।