पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

है । ऐसी स्थिति में भरत औरं दुष्यन्त को, मेनका और विश्वामित्र के साथ जोड़ कर यह भ्रम उत्पन्न करा दिया गया कि वेदों में भरत वंश का वर्णन है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन वैदिक ऋचाओं का यदि विश्लेषण किया जाता है तो लेशमात्र भी मानुषी वर्णन नहीं मिलता। पुराणों को वंशावली अठारह पुराणों में जो वंश वर्णन है वह दो विभागों में विभक्त है । एक वंश वर्णन महाभारत काल से पूर्व का है और दूसरी महाभारत के पश्चात् का है। यदि हम सभी पुराणों की वंशावलियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो द्यावापृथिवी का सा परस्पर अन्तर प्राप्त होता है। जैसे विष्णुपुराण में मनु से लेकर महाभारतकालीन बृहद्वल तक &२ पीढ़ी, वायुपुराण में १२ पीढ़ी, भविष्य पुराण में &१ पीढ़ी और भागवत में ८८ पीढ़ी लिखी हैं । इससे हम निःसंकोच यह कह सकते हैं कि प्रत्येक पुराण में जो वंश वर्णन है वह वशानुक्रम नही बल्कि प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजाओं की नामावली मात्र है । वंशावली को नामावली मानने के लिए हमारे सामने तर्क के अतिरिक्त प्रत्यक्ष प्रमाण और विश्वस्त सूत्र भी हैं। किसी भी पुराण की वंशावली को बिना किसी दूसरे से तुलना किए हुए यदि हम क्रमशः देखते हैं तो उसमें भी भ्रम और सन्देह की गुंजाइश होती है । एक ही वंशावली में पिता और पुत्रों के नामों का ठीक ठीक निराकरण नहीं होता। जैसे महाभारत के प्रथम अध्याय में सूक्ष्म और विस्तार से दो वंशावलियाँ एक ही जगह दी गयी हैं पर एक में ३० पीढ़ी और दूसरी में ४३ पीढ़ी के नाम हैं। इससे यह अनुमान सहज किया जा सकता है कि ये वंशावली नही नामावली हैं । इसके अतिरिक्त, महाभारत में नहुष और ययाति वंश चन्द्र वंश के अन्तर्गत हैं पर वाल्मीकीय रामायण में (७०३६) लिखा है कि सूर्यवंशी अम्बरीष के नहुषनहुष के ययाति ओर ययाति के नाभाग हुए । कालिदास के रघुवंश और वाल्मीकि रामायण के रघुवंश में बहुत ही व्यत्यन्तर है । वाल्मीकि के अनुसार रघु दिलीप के प्रपौत्र ठहरते हैं किन्तु रघुवंशकार कालिदास ने रघु को दिलीप का पुत्र माना है । इस प्रकार इन नामावलियों को वंशावली की संज्ञा देकर सूतों ने पुराणों में एक गम्भीर भ्रम उत्पन्न किया; जो पाठकों और श्रोताओं में आशंका और अविश्वास उत्पन्न किया करता है । वायुपुराण के वण्र्यविषय अन्य पुराणों की भाँति वायुपुराण के भी वण्र्य विषयसर्ग, प्रति सर्ग, मन्वन्तर आदि से समन्वित हैं । वंशानुचरित इस पुराण में अन्य पुराणों की भांति भ्यून है । वायुपुराण के वंशानुक्रम और अन्य वर्ण विषयों में स्पष्टत परोक्षवादप्रतीकवाद और रहस्यवाद निहित है । वायुपुराण पढ़ते समय दो दृष्टिकोण वैज्ञानिक और व्याव हारिक जब तक नही अपनाये जायेंगे तब तक वास्तविक रहस्य नहीं खुल सकता। क्योंकि पुराण वेदों की छाया की भांति हैं । वेदों के रहस्यवाद और चमत्कार पूर्णः वर्णन पुराणों में वहुत ही कौशल के साथ रोचक कथा शैली में लिखे गए हैं । उदाहरण के लिए वायुपुराण के अन्तर्गत नहुष, ययाति, तृवंश आदि राजाओं के वर्णन दोनों पक्ष में अपना रहस्यपूर्ण स्थान रखते है। जब हम इन राजाओं की कथाओ पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार