पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४८९

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४६८ ।I७८ एवं संध्यांशके काले संप्राप्ते तु युगान्तिके । तेषां शास्ता ह्यसाधूनां भृगूणां निधनोत्थितः । ॥ ७५ गोत्रेण वे चन्द्रमसो नाम्ना प्रवितिरुच्यते । माधवस्य तु सोंऽशेन पूर्वं स्वायं भुवेऽन्तरे ७६ समाः स विशीत पूर्णाः पर्यटन्वै वसुंधराम् । आचकर्ष स वै सेनां सवाजिरथकुञ्जराम् ।।७७ प्रगृहीतायुधैविप्रैः शतशोऽथ सहस्रशः । स तदा तैः परिवृतो म्लेच्छान्हन्ति सहस्रशः स हत्वा सर्वगश्चैव राज्ञस्ताञ्शूद्रयोनिजान् । पाषण्डान्स ततः सर्वान्निःशेषान्कृतवान्प्रभुः ७ नात्यर्थं धामिका ये च तान्सर्वान्हन्ति सर्वशः । वर्णव्यत्यासजातांश्च ये च तनुपजीविनः ८० उदीच्यान्मध्यदेशांश्च पार्वतीयांस्तथैव च। प्राच्यान्प्रतीच्यांश्च तथा विन्ध्यपृष्ठापरान्तिकान् ॥।८१ तथैव दाक्षिणात्यांश्च द्रविडान्सहलैः सह । गान्धारान्पारदांएचैव पढ्वान्यवनांस्तथा |l८२ तुषारान्बर्बरांश्चीनाञ्चूलिकान्दरदान्खसान् । लम्पाकानथ केतांश्च किरातानां च जातयः ॥८३ प्रवृत्तचनो बलवान्म्लेच्छानामन्तकृद्विभुः । अधृष्यः सर्वभूतानां चचाराथ वसुंधराम् ८४ माधवस्य तु सोंऽशेन देवस्य हि विजज्ञिवान् । पूर्वजन्मविधिज्ञेन प्रमितिर्नाम वीर्यवन् ८५ गोत्रेण वै चन्द्रमसः पूर्वं कलियुगे प्रभुः । द्वात्रिंशेऽभ्युदिते वर्षे प्रकान्ते विंशतं समाः ८६ से एक पाद शेष रहती हैं। इस नियम के अनुसार स्वायम्भुव मन्वन्तर के आदि कलियुग के सन्ध्याया के समुपस्थित होने पर उन असपुरुषों को दण्ड देने वाला भूगु वंशियों की मृत्यु के उपरान्त उसी वंश में उत्पन्न हुआ, चन्द्रमा के गोत्र का प्रमति नामक राजा भगवान् विष्णु के अंश से उत्पन्न होता है वह स्मस्त पृथ्वी मण्डल पर सैकडों सहस्र शस्त्रास्त्रधारी ब्राह्मणो को साथ लेकर एक विशाल वाहिनी की सहायता से पूरे वीस वर्ष तक भ्रमणकर सहस्रों म्लेच्छे) का संहार करता है ।७३-७८) सभी स्थलों पर जाने वाले उस अमित तेतवी ने उन शूद कुल मे उत्पन्न होने वाले राजाओं को मारकर सभी प्रकार के फले हुए पाषण्डो का निराकरण कर जो लोग धर्म में अधिक विश्वास करने वाले नही थे उन सब को एक दम से विनष्ट करता है । इसके अतिरिक्त वर्णसंकर एवं उनके सहायकों का भी समूल विनाश कर देता है (७४-८०। उदीच्यमध्यदेशीय, पार्वतीय, प्राच्य, प्रतीच्य तथा विन्ध्यगिरि के पृष्ठ पर बसने वाले सीमान्त प्रदेशीय, दाक्षिणात्यद्राविड़ सिंहलदीप निवासी, गान्धारपारद, पल्लव, यवन, तुषार, वर्वर, चीनशूलिक, दरद, खस, लम्बक, केत और किरात प्रभृति म्लेच्छ जातियो को, वह सभी भूतों से न परजित होने वाला, म्लेच्छों का घोर शत्रु प्रमिति अपनी अपनी सेना को साथ ले विनष्ट करता है ।८१-८४॥ चन्द्रमा के गोत्र में उत्पन्न, विष्णु का अंगीभूत, पूर्वजन्म की विधियों को जानने वाला, प्रमिति नामक परम पराक्रमी वह अमित तेजस्वी प्रभु अपनी वत्तीस वर्ष की अवस्था में बीस वर्ष तक अनवरत पृथ्वी प्रदक्षिणा