पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४८८

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अष्टपञ्चाशोऽध्यायः ४६७ e = यजन्ते नश्श्वमेधेन राजानः शूद्रयोनयः। स्त्रीवधे गोवधं कृस्बा हवा चैव परस्परम् ।। उपहन्युस्तदाऽन्योन्यं साधयन्ति तथा प्रजाः ६७ दुःखप्रचारतोऽल्पायुर्दशोत्सादः सरोगता। मोहो ग्लानिस्तथा सौख्यं तमोवृत्तं कलौ स्मृतम् ॥॥६८ प्रजासु भ्र,णहत्या च अथ वै संप्रवर्तते । तस्मादायुर्बलं रूपं फल प्राप्य प्रहीयते । दुःखेनाभिप्लुतानां वै परमायुः शतं नृणम् ६६ दृश्यन्ते नाभिवृश्यन्ते वेदाः कलियुगेऽखिल:। उरसीदन्ते तदा यज्ञाः केवला धर्मपीडितः ॥७० तदा त्वल्पेन कालेन सिद्ध यास्यन्ति मानवाः। धन्या धर्म चरिष्यन्ति युगस्ते द्विजसत्तमः । ७१ श्रुतिस्मृत्युदितं धर्भ ये चरन्त्यनसूयकाः । त्रेतायां वfषको धमों द्वापरे मासिकः स्मृतः । यथाशक्ति चरन्प्राज्ञस्तदलं प्राप्नुयात्कलौ ७२ एष कलियुगेऽवस्था संध्यांशं तु निबोध मे। युगे युगे तु हीयन्ते त्रींस्त्रीन्पादांश्च सिद्धयः ७३ युगस्वभावात्संध्यास्तु तिष्ठतीसास्तु पादशः । संध्यास्वभावाच्चांशेषु पादशस्ते प्रतिष्ठिताः n७४ शूद्र लोग धर्म के पण्डित माने जायेंगे । शूद्र कुल मे उत्पन्न होनेवाले राजा लोग अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान नही करेगे । उस कलियुग मे प्रजावर्ग स्त्री हत्या, गोहत्या, परस्पर मारपीट एवं एक दूसरे का वध करके किसी प्रकार जीवनयापन करतr है । इन सब घोर पापों से होनेवाले दुभूखों की अधिकता से लोग अल्पायु होते है देश का विनाश हो जाता है, अनेक प्रकार की व्याधियांरुणता, अज्ञानग्लानि, कृत्रिम सुख की अभिलाषा और तमसिक मनोवृत्ति, इन सब की कलियुग में प्रधानता कही गई है ।६६-६८ प्रजावर्ग में गर्भहत्या का घोर पाप अन्धाधुन्ध होता है, इन्ही सब घोर पापों के कारण उस युग मे आयु, बल, एवं रूप, इन सब का विनाश हो जाता है । उस समय अनेक दुःखो से पीड़ित लोगो की अधिक आयु सौ वर्ष की होती है । उस घोर कलिकाल में सभी वेद शास्त्र कही तो दिखाई पड़ेगे और कही नही । घोर अधर्म के कारण यज्ञादि सस्कमों का विलोप हो जाता है । किन्तु उस युग में थोड़े समय में ही सिद्धि प्राप्त करते है, उस युगान्त में धर्माचरण करनेवाले उत्तम द्विजगण धन्य है, जो श्रुतियों एवं स्मृतियों में अनुमोदित कर्म का बिना किस प्रकार की निन्दा किये अनुष्ठान करते है । त्रेता युग मे एक वर्ष में प्राप्त होनेवाला जो धमंफल है वह द्वापर युग मे एक मास में प्राप्त किया जाता है, किन्तु उसी धर्मफल को अपनी शक्ति के अनुरूप कलियुग में अनुष्ठान करने पर मनुष्य केवल एक दिन में प्राप्त करता है । यह कलियुग की अवस्था है । अब सन्ध्यांश का वर्णन मुझसे सुनिये ।६६-७२ प्रत्येक युगो मे सिद्धियाँ पूव युग की अपेक्षा पिछले युग में अपने तीन चरणों से हीन हो जाती है, अर्थात् केवल एक चरण मात्र विद्यमान रहती है इसी प्रकार युग के स्वभाव से उसकी सिद्धियाँ सन्ध्या में एकपाद रहती है और सन्ध्याश में सन्ध्या के स्वभाव