पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५

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लोमहर्पण उवाच पृष्टां चैतां कथां दिव्यां श्लक्ष्णां पापप्रणाशिनीम् । कथ्यमानां मया चित्रां यह्वर्था'श्रुतिसैमताम् ॥ यश्चेमां धारयेन्नित्यं शृणुयाद्वाऽप्यभीक्ष्णशः । श्रावयेच्चापि विप्रेभ्यो यतिभ्यश्च विशेषतः ॥६ शुचिः पर्वसु युक्तात्मा तीर्थेष्वायतनेषु च । दीर्घमायुरवाप्नोति स पुराणानुकीर्तनात् ॥७ स्वधवंशधारण कृत्वा स्वर्गलोके महीयते । विस्तारावयवं तेपां यथाशब्द यथाश्रुतम् ॥८ कीत्यैमानं निबोधध्वं सर्वेषां कीर्तिवर्धनम् । धन्यं यशस्यं शत्रुघ्नं स्वग्र्यमायुर्विवर्धनम् ॥६ कीर्तनं स्थिरकीतनां सर्वेषां पुण्यकारिणाम् । सर्गश्च प्रतिरसर्गश्च चंशो मन्घन्तराणि च ॥१० वंशानुचरितं चेति पुराण पञ्चलक्षणम् । कल्पेभ्योऽपि हि यः कल्पः शुचिभ्यो नियतः शुचिः॥११ पुराणं संप्रचक्ष्यामि मारुतं चेदसैमितम् । प्रबोधः प्रलयश्चैव स्थितिरुत्पत्तिरेव च ॥१२ प्रक्रिया प्रथमः पादः कथावस्तुपरिग्रहः । उपोद्भातोऽनुपङ्गश्च उपसंहार एव च ॥१३ धम्यै यशस्यमायुप्यं सर्वपापप्रणाशनम् । एवं हि पादाश्चत्वारः समासात्कीर्तिता मया ।।१४ वक्ष्याम्येतान्पुनस्तांस्तु विस्तरेण यथाक्रमम् । तस्मै हिरण्यगभय पुरुपायेश्वराय च ॥१५ अजाय प्रथमायैव विशिष्टाय प्रजात्मने । ब्रह्मणे लोकतन्त्राय नमस्कृत्वा स्वयंभुवे ॥१६ महदाद्य विशेषान्तं सवैरूप्यं सलक्षणम् । पञ्चप्रमाणं पट्टश्चेतं पुरुपाधिष्ठितं जुतम् ॥१७ लोमहर्यण ने कहा-‘यह जो दिव्य, मधुर, पाप-नाशिनी और विचित्र, अनेकार्थयुक्त, वेद सम्मत कथा हमसे पूछी गई है, और जो कुछ हम कह रहे हैं उसे जो सदा स्मरण रखेगा या बार-बार गुनेगा, ग्राह्मणो एवं विशेपकर यतियों को पवित्रता से समाहित चित्त होकर पर्व के दिनों में तीर्थो और मन्दिरो में सुनावेगा वह इस पुराण कीत्तन के फलस्वरूप दीर्घ आयु प्राप्त करेगा । अपने वंश का जो धारण करता है; स्वर्गलोक में उसकी पूजा होती है। जैसा सुने ठीक शाब्दश: उसको कीतन करने से सभी की कीति विस्तृत होती है।५-८॥ स्थिर कीर्त्तित वाले समस्त पुण्यात्माओं के गुणगान से धन, यश तथा स्वर्ग मिलता है, शत्रुओं का नाश होता और आयु वढ़ती है । सृष्टि, प्रलय, वंश, मन्वन्तर और वंशचरित्र यही पुराण के पाँच लक्षण हैं । यह न्याय से भी न्याय और शुचि से भी निश्चित ही शुचि है। वेद सम्मत वायु प्रोक्त पुराण मैं सुनाऊँगा । इस पुराण में प्रबोध और प्रलय, स्थिति और उत्पत्ति वर्णित है।९-१२। कथनीय वस्तुओं का संग्रह पहला प्रक्रिया पाद, उपोद्घात पाद, अनुपङ्ग पाद तथा उपसंहार पाद भी हैं। ये घर्म यश आयु के देने वाले तथासव पापों का नाश करने वाले हैं। इस प्रकार चारों पादों को संक्षेप में चतला दिया । अव इनको क्रम से विस्तार पूर्वक सुनाऊँगा ।१३-१४। उस हिरण्यगर्भ पुरुषेश्वर, अज, प्रथम, विशिष्ट, प्रजारूप, लोकतन्त्र स्वयम्भू ब्रह्मा को नमस्कार करके महत् तत्त्व से लेकर विशेष पर्यन्त नाना रूपों और लक्षणों के साथ पाँच प्रमाणों तथा छ: श्वेतों वाली, पुरुष से अधिष्ठित वन्दनीय अनुत्तम भूतसृष्टि को निस्सन्देह बताऊँगा ।१५-१७॥