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पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६

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प्रथमोऽध्यायः

 
कल्पयोरन्तरं प्रोक्तं प्रतिबंधिश्च यस्तयोः । तमोमात्रामृतत्वाच्च ब्रह्मणोऽधर्मसंभवः ॥६५
तथैव शतरूपायाः संभवश्च ततः परम् । प्रियव्रतोत्तानपादौ प्रत्याकृतयश्च तः ॥६६
कीर्यन्ते धुतपाश्मानो येषु लोकाः प्रतिष्ठिताः रुचेः प्रजापतेश्चोर्वीमाकूत्यां मिथुनोद्भवः ॥६७
प्रसूत्यामपि दक्षस्य कन्यानां प्रभवस्ततः । दाक्षायणीषु च प्यूर्वे श्रद्धधासु महात्मनाम् ।।६८
धर्मस्य कीर्यते सर्गः सात्त्विकस्य सुखोदयः। तथाऽधर्मस्य हिंसायां तामसोऽशुभलक्षणः ॥६६
महेश्वरस्य सत्यां च प्रजासर्गाः प्रकीर्तितः । निरामयं च ब्रह्मणं तादृशं कीर्तितं पुनः ॥७०
योगं योगनिधिः प्राह द्विजानां मुक्तिकाक्षिणाम् । अवतरश्च रुद्रस्य महाभाग्यं तथैव च ॥७१
दैवेदका कथावाऽपि खेचादपरमो महान् । अझनारायणभ्यांच यत्र स्तोत्रं प्रकीर्तितम् ॥७२
स्तुतस्ताभ्यां स देवेशस्तुतोष भगवाञ्शिवः । प्रादुर्भावोऽथ रुद्रस्य ब्रह्मणोऽङ्के महात्मनः ॥७३
कीर्यते वामहेतुश्च यथाऽरोदीन्प्रहामनाः । रुद्रादीनि यथा ह्यष्टौ नामान्यानोत्स्वयंभुवः ॥७४
यथा च तैर्याप्तमिदं त्रैलोक्यं सचराचरम् । भृग्वादनामृषीणां च प्रजासर्गोपवर्णनम् I७५
वशिष्टस्य च ब्रह्मर्षेर्यत्र गौत्रानुकीर्तनम् । अग्नेः प्रजायाःवभूतिःस्वाहयां यत्र कीर्तिता ॥।७६
पितृणं द्विप्रकाराणां स्वधयास्तदनन्तरम् । पितृवंशप्रसङ्गन कीर्यते च महेश्वरात् I७७


तमोगुण से ढकने के कारण ब्रह्मा से अधर्म की उत्पत्ति, एवं उसके पश्चात् शतरूपा का जन्म, प्रियव्रत और उत्तानपाद तथा प्रसूति और आकूति जिनसे सृष्टिविस्तार हुआ पुनः जिनके स्मरण से लोग पवित्र हो जाते है - जिनमें लोक प्रतिष्ठित हैं उनका वर्णन है । रुचि एवं प्रजापति दोनों की उत्पत्ति के बाद फिर आकूति से मैथुनामक सृष्टि, प्रसूति से दक्ष की लड़कियों की उत्पत्ति, श्रद्धा आदि में महात्माओं की उत्पत्ति आदि बताई गई है। सात्विक घमं की सुखमयी तथा अधर्म की तामसी अशुभ रूपा हिंसामयी सृष्टि का वर्णन है। सती में महेश्वर की प्रजा-सृष्टि और वैसे ही निरामय ब्रह्मा का कीर्तन किया गया है । मोक्ष की इच्छा रखने वाले ब्राह्मणों के लिये योगीश्वर ने योगब्रह्म बतलाया है एवं रुद्र के भाग्यशाली अवतार का वर्णन है। तीनों वेदों की कथा ब्रह्मा और नारायण का उत्तम संवाद एवं वहाँ स्तोत्र का भी कीर्तन है । इन दोनों की स्तुति से देवेश भगवान शिव सन्तुष्ट हुए और महत्मा रुद्र का ब्रह्मा के शरीर में आविर्भाव हुआ । महामना रुद्र क्यों रोये उसका तथा रुद्र आठ नाम आदि स्वयम्भू के क्यों पड़े उसका कारण बताया गया है। साथ ही इस सचराचर जगत् को उन्होंने कंसे व्याप्त कर लिया एवं भृगु आदि ऋषियों के प्रजासर्ग का वर्णन है ।६३-७५। ब्रह्माष वशिष्ठ के गोश का वर्णन तथा अग्नि का स्वाहा से प्रजासर्गे वणत है । पितृ-वंश के प्रसंग में दो प्रकार के पितरों तथा फिर स्वधा का वर्णन है एवं महेश्वर का सती के लिये दक्ष तथा श्रीमान् भृगु आदि के


इदमर्घ नस्ति घ. पुस्तके ।