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पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२७

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वायुपुराणम्

 
दक्षस्य शापः सत्यर्थे भृग्वादीनां च धीमताम् । प्रतिशापश्च रुद्रस्य दक्षादभुतकर्मणः I७८
प्रतिषेधश्च वैरस्य कीर्यते (+दोपदर्शनात् । मन्वन्तरप्रफीन कालज्ञानं च कीर्यते II७€
प्रजापतेः कर्दमस्य कन्या या शुभलक्षणा । प्रियव्रतस्य पुत्राणां कीर्यते ) यत्र विस्तरः ||८१
उको नाभेर्निसर्गश्च रजस ध महात्मनः। द्वीपानां ससमुद्राणां पर्वतानां च कीर्तनम् ।E२
वर्षाणां च नदीनां च तद्भेदानां च सर्वशः । द्वीपभेदसहस्राणसन्तर्भदश्च सप्तसु ॥८३
चिस्तरान्मण्डलांश्चैव जम्बुद्वीपसमुद्रयोः । प्रमाणं योजनाग्रेण कीर्यते पर्वतैः सह ॥८४
हिमवान्हेमकूटस्तु निषधो मेरुरेव च । नीलः श्वेतः शुङ्गवांश्व कीर्यन्ते वर्षपर्वताः ॥८५
तेषामन्तरविष्कम्भा उच्छायायासविस्तराः । कीर्यन्ते योजनाग्रेण ये च तत्र निवासिनः |८६
भारतदीनि वर्षाणि नदीभिः पर्वतैस्तथा । भूतैश्चोपनिचिशिष्टानि गतिमद्भिर्तृवैस्तथा ॥८७
जम्बुद्वीपादयो द्वीपाः समुद्भः सप्तभिर्युतः । ततश्चाप्ग्रमयी भूमिर्लोकालोकश्च कीर्यते ॥८८
अण्डस्यान्तस्त्विमे लोकाः सप्तद्वीपा च मेदिनी । भूरादयश्च कीर्यन्ते वरयैः प्रकृतैः सह ॥८६
सर्वे च तत्प्रधानस्य परिमाणैकदेशिकम् । सव्यासपरिमाणं च संक्षेपेणैव कीर्यत ॥८०


प्रति शाप एवं विचित्रकर्मा दक्ष का रुद्र को देना वणित है । दोष दिखाकर वर का प्रतिषेध एवं प्रतिशाप मन्वन्तर के प्रसंग से काल ज्ञान वणित है । कर्दम प्रजापति की शुभ लक्षणों वाली कन्या तथा प्रियव्रत के का पुत्रों का विस्तार वतलाया गया है । तत्पश्चात् वे सब पृथक्पृथक् किनकिन द्वीपों और देशों में भेजे गए एवं फिर स्वायम्भुव सर्ग का वर्णन है। नाभि तथा महात्मा रजस का सर्ग एवं समुद्रों द्वीपों ओर पर्वत का वर्णन, वर्षों, नदियों तथा उन सब के भेदों एवं सातो द्वीपों के सहस्रों भेद और उपभेद बताये गये है (७६.८२॥

  जम्बूद्वीप और समुद्र के विस्तार तथा उनके मण्डल तथा पर्वतों के साथ योजन-मान से उन का प्रमाण वताया गया है । हिमवान् हेमकूट, निपघ, मेरु, , श्वेत और शृङ्गवान् ये वर्षपर्वत कहाते हैं । इनकी लम्बाईचौड़ाई और ऊँचाई तथा इनके बीच के विष्कम्भों का परिमाण योजनों में दिया गया है एवं इनमें निवास करने वालों का भी वर्णन है । भारत आदि वयं चल, अचल, नदियों, पर्वतों तथा प्राणियों से भरे है । जम्बूद्वीप आदि द्वीप सात समुद्रों से घिरे हैं और उसके पश्चात् जलमयो भूमि तथा लोकालोक का कीर्तन है ।८३-८८॥

  ब्रह्माण्ड के बीच से भू आदि लोक तथा सातों द्वीपों वाली पृथ्वी अपने-अपने नैसर्गिक प्राकारों के साथ है। इन सबों मे जो प्रधान है उनका एफदेशिक परिश्रम इनके व्यासों के प्रमाणके साथ संक्षेप में लिखा है । सूयं तथा


धनुश्चिद्भरतर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति ।