पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२२

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प्रथमोऽध्यायः पुराणवेदो ह्यखिलस्तस्मिन्सम्यक्प्रतिष्ठितः। (* भारती चैव विपुला महाभारतवर्धिनी ।।१८ धर्मार्थकाममोक्षार्थाः कथा यस्मिन्प्रतिष्ठिताः।) खकाः सुपरिभाषश्च भूमावोषधयो यथा ।।१६ स तान्न्यायेन सुधियो न्यायविन्मुनिपुंगवान् । अभिगम्योपसंख्य नमस्कृत्य कृताञ्जलिः ।।२० तोषमायास मेधावी प्रणिपातेन तानृषीन् । ते चापि सत्रिणः प्रीताः ससदस्या महौजसः ।।२१ तस्मै साम च पूजां च यथावत्प्रतिपेदिरे । अथ तेषां पुराणस्य शुश्रूषा समपद्यत ।।२२ दृष्ट्वा तमतिविश्वस्तं विद्वांचे लोमहर्षणम् । तस्मिन्सत्रे गृहपतिः सर्वशास्त्रविशारदः ।।२३ इङ्गितैर्भावमालक्ष्य तेषां सुतमचोदयत् । त्वया सूत महाबुद्धिर्भगवान्ब्रह्मवित्तमः ।।२४ इतिहासपुराणार्थं व्यासः सस्यगुपासितः । दुदोह वै मतिं तस्य त्वं पुराणश्रयां कथाम् ।२५ एषां च ऋषिमुख्यानां ण)पुराणंप्रतिधीमताम् । शूषाऽस्तिमहबुद्धे तच्छावयितुमर्हसि ॥२६ सर्वे इमे महात्मानो तानाशोत्राः समागताः । स्वास्वान्वंशान्पुराणैस्तु शृणुयुद्धेयवादिनः ।२७ सपुत्रान्दीर्घसत्रेऽस्मिञ्श्रावयेथा मुनीनथ । दीक्षिष्यमाणैरस्माभिस्तेन प्रागसि संस्मृतः ॥ २८ इति संनोदितः सुतः प्रत्युवाच शुभां गिराम् । श्लक्ष्णां च न्यायसंयुकां यां ब्रूयातलोमहर्षणः ।।२६ करने वाली शक्तिमती वाणी उनमें प्रतिष्ठित थी । जिस प्रकार पृथ्वी में ओषधियाँ भरी हुई हैं उसी प्रकार उनमें धर्म अर्थ, काम और मोक्ष की कथाएँसूक्तियाँ एवं सुन्दर परिभाषाएँ भरी पड़ी थीं नीतिज्ञ मेधावी सूत जी ने मुनिवरों के पास पहुँच कर नियम से सादर हाथ जोड़ नमस्कार किया और उनको अपनी नम्रता से सन्तुष्ट कर दिया । वे परम तेजस्वी यज्ञकर्ता मुनिगण सदस्यों के साथ बहुत प्रसन्न हुए और यथायोग्य उनकी प्रशंसा और पूजा की गई । उस समय मुनियों के मन में पुराण सुनने की इच्छा प्रकट हुई ।१८-२२॥ उस यज्ञ का गृहपति समस्त शास्त्रों का ज्ञाता था । उसने अत्यन्तविरवस्त परमविद्वान् लोमहर्षण को देखकर तथा उन ऋषियों के इङ्गित से उनके मनोभावों को समझकर सूतजी से कहा—‘सूत जी ! आपने इतिहास और पुराण के निमित्त ब्रह्मज्ञवरिष्ठ मेधावी व्यास जी की बड़ी उपासना की है और उनकी बुद्धि से आपने पुराणों की कथा का दोहन कर लिया है । महाबुद्धे ! इन धीमान् ऋषि प्रवरों को पुराण सुनने की बड़ी आकांक्षा है अतएव आपको सुनाना चाहिये । ये सब विभिन्न गोत्रों के महात्मा यहाँ आये हुए हैं। अपने-अपने वंशों को पुराणों के द्वारा ये सुन लें । ये लोग इस महान् यज्ञ मे पुत्रों समेत आये हुए है, इन्हें पुराण की कथाएँ सुनाइये । प्रस्तुत यज्ञ की दीक्षा लेने के पूर्व इसीलिए हम लोगों ने आपका स्मरण किया है । ऋषियों तथा गृहपति के इस प्रकार अनुरोध करने पर लोमहर्षण सूत जी मधुर स्वर मे न्याय युक्त कल्याणकारी वाणी बोलने लगे ।२३-२६॥

  • धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थो घ. पुस्तके नास्ति ।