पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२१

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वायुपुराणम्

य इमान्पश्यते भावान्नित्यं सदसदात्मकान् । आविशन्ति पुनस्तं वै क्रियाभाचार्टीमीश्वरम् ।।६
लोककृल्लोकतत्वज्ञो योगमास्थाय तस्वचित् । असृजत्सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च । ७
तमजं विश्वकर्माणं चित्पतिं लोकसाक्षिणम् । पुराणाख्यानजिज्ञासुर्तीजामि शरणं प्रभुम् ।।८
ब्रह्मवायुमहेन्द्रेभ्यो नमस्कृत्य समाहितः। ऋषीणां च चरिष्टाय चांसेसष्ठाय महात्मने ।’
तन्नष्त्रे चातियशसे जातूकर्णा( प्य् )य चर्पये । वशिष्ठायैच शुचये कृष्णद्वैपायनाय च ।१०
पुराणं संप्रवक्ष्यामि ब्रह्मोक्तं वेदसंमितम् । धर्मार्थन्यायसंयुक्छुरागमैः सुविभूषितम् ।।११
असीमकृष्णे विक्रान्ते राजन्येऽनुपमत्विषि । प्रशासतीम धर्मेण भूमिं भूमिपसत्तमे ।।१२
ऋषयः संशितात्मानः सत्यव्रतपरायणः। ऋजवो नष्टरजसः शान्ता दान्ता जितेन्द्रियः १३
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे दीर्घसत्रं तु ईजिरे । नद्यःस्तीरे दृपद्धत्याः पुण्यायाः शुचिरोधसः ।१४
दीक्षितास्ते यथाशास्त्रं नैमिषारण्यगोचराः । द्रष्टुं तान्स सहबुद्धिः सूतः पौराणिकोत्तमः ।१५
लोमानि हर्षेयचक्रे श्रोतृणं यत्सुभाषितैः । कर्मण प्रथितस्तेन लोकेऽस्मॅिलोमहर्षीणः ॥१६
तपःश्रुताचरनिधेर्वेदव्यासस्य धीमतः शिष्यो वभूव मेघावी त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥१७


जिनमें सारे पदार्थ उत्पन्न होने के लिये ही प्रविष्ट होते हैं तथा जो भुवनभावन लोकतत्त्वज्ञ तत्त्ववेत्ता भगवन् योग के बल से स्थावर, जङ्गम और समस्त भूतों की सृष्टि करते हैं, पुराण की कथाएँ जानने की लालसा से मैं उन्ही अजन्मा, सर्वकर्मा, लोकसाक्षी, चित्पति प्रभु की शरण में आया हूँ । ब्रह्मा वायु महेन्द्र तथा ऋषिश्रेष्ठ वसिष्ठ एवं उनके दोहित्र परम कोfतमान जाकण्यं ऋषि प्रकृष्ट पुण्यामा कृष्णद्वैपायन को नमस्कार करके समाहितचित्त होकर धर्म अथै तथा न्याय से भरे पूरे शास्त्रों से विभूषित, वेदों के समान ब्रह्मोक्त पुराण को मैं सुनाऊँगा ॥३-११॥

जिस समय अनुपम कान्तिमान विक्रमशाली नरपति श्रेष्ठ राजा असीमकृष्ण घमंपूर्वक इस पृथ्वी पर शासन करते थे, उस समय पवित्र तट वाली पुण्यसलिला दृषद्वती नदी के तीर पर धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र मे सरल शान्त, दातजितेन्द्रिय, रजोगुणविहीन, स्थिरबुद्धि, सत्यव्रती ऋषियो ने एक महान् यज्ञ किया । शास्त्र की विवि से उन नैमिषारण्यवासी ऋषियों की दीक्षा हुई थी । वहाँ उनके दर्शन करने के लिए महाबुद्धि पौराणिकप्रवर सूत आये ।१२-१५॥

उनके सुभाषित वचनों को सुन श्रोताओं को रोमांच हो जाता था, अतः इस संसार में इस कर्म के अनुसार उनका लोमहर्षण नाम प्रसिद्ध था ।१६वे तपस्या विद्या तथा आचार के निधन श्री वेद व्यास के वड़े मेघावी शिष्य थे, तीनों लोकों में उनकी ख्याति थी ।१७। समस्त पुराणों, वेदों तथा महाभारत को पल्लवित