पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०९७

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१०७६ वायुपुराणम् न्यासिभ्यश्चापि कर्मिभ्यो धर्मिभिश्च तथा पुनः । ज्ञ (य) तिपवित्रेभ्यः पवित्रः स्यां सदा सुराः पवित्रमस्तु तं देवा दैत्यमुक्त्वा ययुदिवम् । दैत्यं दृष्ट्वा च स्पृष्ट्वा च सर्वे हरिपुरं ययुः शून्यं लोकत्रयं जातं शून्या यमपुरी ह्यभूत् । यस इंद्रादिभिः सार्धं ब्रह्मलोकं ततोऽगतम् ब्रह्माणमूचिरे देवा गयासुरविलोपिताः । त्वया दत्तोऽधिकारो वं गृहाण त्वं पितामह ब्रह्माऽब्रवीत्ततो देवान्न्रजामो विष्णुमव्ययम् | ब्रह्मादयोऽब्रुवन्विष्णुं त्वया दत्तवरेऽसुरे तद्दर्शनाद्ययुः स्वर्गं शून्यं लोकत्रयं ह्यभूत् | देवरुक्तो वासुदेवो ब्रह्माणं स वचोऽब्रवीत् गत्वाऽसुरं प्रार्थयस्व यज्ञार्थं देहि देहकम् | विष्णूक्तः ससुरो ब्रह्मा गत्वाऽपश्यन्महासुरन् गयासुरोऽब्रवीदृष्ट्वा ब्राह्मणं त्रिदशैः सह | संपूज्योत्थाय विधिवत्प्रणतः श्रद्धयाऽन्वितः गयासुर उवाच अद्य मे सफलं जन्म अद्य मे सफलं तपः । यदागतोऽतिथिर्ब्रह्मा सर्व प्राप्तं मयाऽद्य वै ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ एवं सभी प्रकार के योगियों संन्यासियो गृहस्थों, घर्मिष्ठों एवं यतियों से भी, जो अतिशय पवित्र जाने जाते हैं मैं सर्वदा बढकर पवित्र होऊँ — यही मेरी अभिलाषा है। गयासुर ! तुम अपनी इच्छा के अनुरूप हो पवित्रता लाभ करो- ऐसा कहकर देवगण गयासुर को पुन देखकर एवं पवित्र करने की भावना से स्पर्श कर स्वर्ग को प्रस्थित हुए गयासुर के इस अद्भुत एवं महान् कार्य से तीनों लोक एवं यमपुरी सूनी हो गई । तब इन्द्रादि देवताओं को साथ लेकर यमराज ब्रह्मलोक को गये। गयासुर द्वारा अपदस्थ किये गये देवताओं ने कहा, पितामह ! हम सबों का अधिकार तुम्हारा ही दिया हुआ था, अब उसे तुम्ही ग्रहण करो |१६-२१॥ ब्रह्मा 'ने देवताओं को ऐसी बातें सुनकर उनसे कहा, चलिये, इस कार्य के लिये हम लोग भगवान् विष्णु के पास चलें जो कभी विचलित होनेवाले नही है । वहाँ जाकर ब्रह्मा प्रभृति देवों ने भगवान् विष्णु से कहा, देव ! तुमने गयासुर को जैसा वरदान दे दिया है उसके प्रभाव से प्रतिदिन सभी प्राणी उसका दर्शन करके स्वर्ग को चले जाते है, उसका परिणाम यह हुआ है कि तीनों लोक सूना हो गया है, देवताओं के इस संयुक्त निवेदन करने पर वासुदेव ने ब्रह्मा से कहा, कि आप जाकर यज्ञ करने के लिये गयामुर से प्रार्थना करें कि वह अपना शरीर दे । विष्णु भगवान् के ऐसा कहने पर देवताओं समेत ब्रह्मा उस महान् असुर गय के पास गये । अन्य देवताओं के साथ ब्रह्मा को आया देखकर गयासुर ने उन सब को विधिपूर्वक प्रणाम किया और परम श्रद्धा पूर्वक पूजा आदि करके निवेदन किया |२२-२५॥ ने गयासुर बोला:- आज मेरा जन्म सफल हो गया, मेरी तपस्या फलवती हुई, जो स्वयं भगवान् ब्रह्मा अतिथि रूप में यहाँ आये | आज मैं सब कुछ पा चुका | हे योगिन् ! योगवेत्ता, सभी लोको