पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०९८

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षडधिकशततमोऽध्यायः योगिन्योगाङ्गवित्सर्वलोकस्वामिन्पितर्गुरो । यदर्थमागतो ब्रह्मंस्तत्कार्यं करवाण्यहम् ब्रह्मोवाच पृथिव्यां यानि तीर्थानि दृष्टानि भ्रमता सया। यज्ञार्थ न तु ते तानि पवित्राणि शरीरतः त्वया देहे पवित्रत्वं प्राप्तं विष्णुप्रसादतः । अतः पवित्रं देहं त्वं यज्ञार्थ देहि मेऽसुर गयासुर उवाच धन्योऽड्ं देवदेवेश यद्देहं प्रार्थ्यते त्वया | पितृवंशः कृतार्थो से देहे यागं करोषि चेत् त्वयैवोत्पादितो देहः पवित्रस्तु त्वया कृतः । सर्वेषामुपकाराय यागोऽवश्यं भवत्विति इत्युक्त्वा सोऽपतभूमौ श्वेतकल्पे गयासुरः । नैर्ऋतों दिशमाश्रित्य तदा कोलाहले गिरौ शिरः कृत्वोत्तरे दैत्यः पादौ कृत्वा तु दक्षिणे । ब्रह्मा संभृतसंभारो मानसानृत्विजोऽसृजत् अग्निशर्माणममृतं शौनकं जाञ्जलि मृदुम् । कुमुथि वेदकौण्डिल्यं हारीतं काश्यपं कृपम् १०७७ ॥२७ ● ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ॥३३ ॥३४ के स्वामिन् ! गुरुदेव ब्रह्मन् ! भगवन् ! आप जिस प्रयोजन से यहाँ पधारे हैं, उसे मैं पूरा करना चाहता हूँ | २६-२७ ब्रह्मा ने कहा- महाभाग गयासुर ! समस्त पृथ्वी भर में भ्रमण करके मैंने जिन-जिन तीर्थों को देखा है, वे तुम्हारे शरीर की पवित्रता के कारण यज्ञ के लिए पवित्र नही रह सके । भगवान् विष्णु को अनुकम्पा से तुमने अपने शरीर में परम पवित्रता का लाभ किया है, अतः मै चाहता हूँ कि यज्ञ के लिये तुम अपने पवित्र शरीर का मुझे दान करो |२५-२६ गयासुर बोला - हे देव-देवेश ! आप हमारे शरीर के लिए प्रार्थना कर रहे है, यह हमारा धन्य भाग्य है । यदि आप हमारे शरीर में यज्ञ क्रिया सम्पन्न करेंगे तो हमारा पितृ कुल कृतकृत्य हो जायगा । हे देव ! इस नश्वर शरीर की रचना आप ही ने की है, तुम्हीं ने इसे इतनी अपूर्व पवित्रता प्रदान की है, सभी जीव धारियों के लाभार्थ होनेवाला वह याग अवश्य सम्पन्न होगा। श्वेत कल्प मे ऐसी बाते कर गयासुर नैऋत दिशा की ओर धराशायी हो गया, उस समय पर्वत प्रान्त में सर्वत्र कोलाहल मच गया | दैत्य ने अपने शिर को उत्तर दिशा में और दोनों पैरो को दक्षिण दिशा में किया। यज्ञ की समस्त सामग्रियों एवं साधनों समेत ब्रह्मा ने उक्त यज्ञ को सर्वाङ्गतः सम्पन्न करने के लिये मानस पुरोहितों की सृष्टि की |३० ३३॥ उनके नाम थे, अग्निशर्मा, अमृत, शौनक, जाञ्जलि, मृदु, कुमुथि, वेद कौण्डिल्य, हारीत, काश्यप, कृप, गर्ग, कौशिक वाशिष्ठ, परम तपोनिष्ठ भार्गव, वृद्ध पाराशर, कण्व, माण्डव्य, श्रुति केवल, श्वेत, सुताल, दमन,