पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०९६

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षडधिकशततमोऽध्यायः धरिष्णवेऽखिलस्यास्य योगिनां पारविष्णवे | वर्धिष्णवे ह्यनन्ताय नमो भ्राजिष्णवे नमः सनत्कुमार उवाच एवं स्तुतो वासुदेवः सुराणां दर्शनं ददौ । किमर्थमांगता देवा विष्णुनोक्तास्तमनुवन् गयासुरभयाद्देव रक्षास्मानब्रवीद्धरिम् | ब्रह्माद्या यान्तु तं दैत्यमागमिष्यामहं ततः केशवो गरुडारूढो वरं दातुं गयासुरे | सर्वे स्वं स्वं समास्थाय ययुर्वाहनमुत्तमम् ऊचुस्तं वासुदेवाद्याः किमर्थं तप्यते त्वया | संतुष्टाः स्वागताः सर्वे वरं ब्रूहि गयासुर गयासुर उवाच यदि तुष्टाः स्थ मे देवा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । सर्वदेवद्विजातिभ्यो यज्ञतीर्थशिलोच्चयात् ॥१६

  • देवेभ्योऽतिपवित्रोऽहमृषिभ्योऽपि शिवाव्ययात् । मन्त्रेभ्यो देवदेवोम्यो योगिभ्यश्चापि सर्वशः ॥१७

१०७५ ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ हैं, अनन्त महिमा शाली, उत्तरोत्तर विकाश शील एवं महा महिमामय हैं, उन भगवान् विष्णु को हम सभी बार बार नमस्कार करते हैं |१०-११। सनत्कुमार बोले:- नारद जो ! ब्रह्मादि देवताओं द्वारा स्तुति किये जाने पर भगवान् वासुदेव ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि देवगण ! आप लोगों का यहाँ पर किस कारण आगमन हुआ है । देवताओं ने हरि से कहा देव ! हम लोगों की गयासुर से रक्षा कीजिये । हरि ने कहा ब्रह्मादि देवगण आप लोग जाइये, मैं उस दैत्य के पास आ रहा हूं । ऐसा कहकर केशव गरुड़ पर सवार होकर वरदान देने की कामना से गयासुर के पास गमनोद्यत हुए और अन्य देवगण भी अपने-अपने उत्तम वाहनों पर सवार होकर उसी स्थान को गये । वासुदेव प्रभृति देवगणों ने जाकर गयासुर से कहा, गयासुर ! तुम किस लिए तपस्या कर रहे हो तुम्हारी इस घोर तपस्या से हम सव सन्तुष्ट हैं, और तुम्हें वर देने के लिये यहाँ आये हुए हैं, मन चाहा वरदान मांग लो । १२-१५॥ गयासुर बोले- ब्रह्मा, विष्णु महेश्वर प्रभृति देवगण ! यदि आप लोग सचमुच हमारे ऊपर सन्तुष्ट हैं तो मेरी यह कामना है कि मैं सभी देवताओं, द्विजातियों, यज्ञों, तीर्थो एवं पर्वतीय प्रान्तों से भी पवित्र हो जाऊँ समस्त देवगणों से भी लोग मुझे अति पवित्र मानें | धर्माचार परायण ऋषियों एवं अविनाशी शिव से भी बढकर पवित्र होने को मेरी कामना है सभी प्रकार के उत्तमोत्तम मंत्रों, देवी देवताओं

  • एतदर्घस्थाने वेदेभ्योऽतिपवित्रोऽहं पवित्रे भवभोः सदेति ख. पुस्तके |