पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/९९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

[ पञ्चमो- रुद्राष्टाध्यायी - मन्त्रः । नील॑ग्ग्रीवा शितिकण्ठादिव रुद्राऽउप- मिश्रताः ॥ तेषा॑ ० ॥ ५६ ।। ● ॐ नीलग्रीवा इत्यस्य परमेष्ठी प्रजापति | निच्यदायेनुप् छन्दः । रुद्रो देवता | वि० पू० ॥ ५६ ॥ (९०) भाष्यम् - चलोकस्थिना रुद्रा उच्यन्ते ( नीलग्रीवा : ) कृष्णकण्ठा: ( शितिकण्ठा: ) श्वेतकण्ठाश्व ( रुद्राः ) ये रुद्राः ( दिवम् ) दालोकम् ( उपश्रिताः ) उपरिस्थिताः तेष मित्यादि पूर्ववत् ॥ ५६ ॥ भाषार्थ-द्युलोकस्थित रुद्रोंका वर्णन | नोकप्रीत्रावाले श्वेतशले विषमक्षणसे कितनाएक कण्ठ श्वेर और कितनाएक नील अथवा निर्मल आकाश और मेघसहित आशशमै चन्द्र तारादिमें वर्तमान जो रुद्र लोक आश्रय किये हैं उनके सम धनुष सहन्त्रयोजन दूर मंत्रबलसे निक्षेप करते है ॥ ५६ ॥ . मन्त्रः | नील॑ग्ग्रीवा शितिकण्ठ शुर्वाऽअधक्षमा- चुराह ॥ तेषां ० ॥ ५७ ॥ ॐ नीलग्रीवा इत्यस्य परमेष्ठी प्रजापतिऋषिः | निच्छृदायें- नुष्टुप्छन्दः । रुद्रो देवता | वि० पू० ॥ ५७ ॥ भाष्यम् - पातालस्था रुद्रा उच्यन्ते ( नीलग्रीवा: ) कृष्णग्रीयाः ( शिति- कण्ठाः ) श्वेतप्रीवाः ये ( शर्वा: ) रुद्रा: ( अध: ) अधोभागे ( क्षमाचराः ) पाताले वर्तमानाः (तेषाम् ) तेषामित्यादि पूर्ववत् ॥ ५७ ॥ भाषार्थ-पातालस्थित रुद्रों का वर्णन | नीलीगर्दनवाले, श्वेतश्ठाले जो शर्वनामक रुद्र नीचे पातालमें स्थित हैं, उनके सब धनुष सहस्रयोजन दूर मंत्रवलसे निक्षेप करते हैं ॥ ५७ येवृक्षेपुशुण्पिअंरानील॑ग्ग्रीवा॒ज्ञिलह- ताएँ । तेषा० ।। ५८ ।।