पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/८७

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(७८) रुद्राष्टाध्यायी - [पञ्चमो- मापार्थ-कूपमें होनेवालेके निमित्त और गर्त में होनेवाले के निमित्त नमस्कार है, और महा- प्रकाश घोर अधकार में स्थितके निमित्त और धूप वा प्रकाशमै होनेवाळेके निमित्त नमस्कार "है मेघमें होनेवालेके निमित्त और बिजली में होनेवाले के निमित्त नमस्कार है। और वर्षांकी घारामें स्थितके निमित्त, तथा दृष्टिके प्रतिबंध में होनेवालेके निमित्त नमस्कार है |॥ ३८ ॥ मोबात्या॑यच॒रेष्म्म्या॑च॒न मोबास्तुच्या यचवास्तुपायचुनमुह सोमा॑यचारु॒वाय॑च॒न् म॑स्ताघ्रार्यचारुणाय॑च॒नम॑ शुङ्गवें ॥ ३९ ॥ ॐ नमो वात्यायेत्यस्य कुत्स ऋषिः । स्वराडाप पंक्तिश्छन्दः । रुद्रो देवता | वि० पू० ॥ ३९ ॥ भाष्यम्-~-( च ) और (वात्याय ) वाते सवः वात्यः तस्मै ( च ) ( रेष्म्याय ) रिष्यन्ते नश्यन्ति भूतान्यत्रेति रेष्मा प्रलयकालः तत्र भवः रेष्म्यः तस्मै ( नमः ) नमोऽ. -स्तु ( च ) ( वारतव्याय ) वास्तु गृहूँ तत्र भवः वास्तव्यः तस्मै ( च ) ' (वास्तुपाय ) वास्तु गृहं पाति वास्तुपः तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( सोमाय ) उमासहितः सोम- स्वस्मै ( च ) ( रुद्राय ) दुःखनाशकाय ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( ताम्रीय ) उद- याद्रविरूपेण तस्मै (च) (अरुणाय ) अरुणाय ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ ३९ भाषार्थं वायुप्रवाहमें होनेशळेके निमित्त नमस्कार है, और अध्यकी पचनमें होनेशल निमित्त नमस्कार है। वास्तुगृह में होनेवाले के निमित्त और वास्तुगृहके पालनेवाले के निमित्त समस्कार हैं । चन्द्रमामें स्थित निमित्त वा उमासहितके निमित्त, और दुःखनाशक रुद्ररूप या अनिरूपके निमित्त नमस्कार है | सायकालके सूर्यमें स्थितके निमित्त प्रभातकालीन सूर्य में स्थितके निमित्त नमस्कार है वा उद्यकालीन ताम्र और उदयकालके उपरान्त कुछ रक्तरूपसूर्य में स्थितके निमित्त नमस्कार है ॥ ३९ ॥ आशय-वायु सादिके परमाणुओंको एकत्र कर पचीकरणको रीतिसे इस ससारकी पूर्ण वस्तुओंके रचनेवाले और सबके रक्षक सोम यव आदिके उत्पादक पापादि दोष निवारणको भयानकरूप अग्रिसे तैत धातुके समान शुद्ध रजोगुणसे संसार उत्पादक के निमित्त नम- स्कार है ॥ ३९ ॥ ► मन्त्रः । नम॑+शुङ्गवैचपशुपत॑ये॒चनम॑ऽउग्राय च॑भी-