पृष्ठम्:रुद्राष्टाध्यायी (IA in.ernet.dli.2015.345690).pdf/८४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

ऽव्याय:५० ] माध्यसहिता | (७५) श्रेणी में विद्यमानके निमित्त नमस्कार है, और शीघ्र चलनेवाले रथोंकी श्रेणी में विद्यमान के निमित्त नमस्कार है, युद्धविशारदोंके हृदयभ विद्यमानके निमित्त, और शत्रुका हृदय वेष- नवोल शघ्र में भी विद्यमानके निमित्त नमस्कार है ॥ ३४ ॥ नमोबिल्म्मिनॅचकवचिर्णचनमोम्मि चतुरु॒धिने॑च॒नम॑ श्रुताचश्रुतसुगायचन मोदुन्दुयायचाहनुयायचनमोकृष्ण- वै ॥ ३५ ॥ ॐ नमो बिल्मिन इत्यस्य कुत्स ऋषिः । स्वराडा त्रिष्टु छन्दः । रुद्रो देवता | वि०पू० ॥ ३५ ॥ 47 भाष्यम् - ('विल्मिने ) विल्ममस्यास्तीति बिल्मी, बिल्म शिरखाणमस्वास्तीति विल्मी तस्मै ( च ) ( काचिने ) पटस्थूर्त कार्पासगर्भ देहरक्षक कवचं तदस्यास्तोति तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( वर्मिणे ) लाइमयं शरीररक्षकं वर्म तदस्यारतीदि तस्मै ( च ) ( वरूथिने ) वरूयः स्थगुप्तिर्वा सोऽस्यास्तीति वरूथी तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( श्रुताय ) प्रसिद्धाय ( च ) ( श्रतसेनाय ) श्रुता प्रसिद्धा सेना यस्य स ध्रुवसेनः तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( ) दुन्दुम दुन्दुभ्यस्त (च) (आइनन्याय ) आहनने भवः आइनन्यः तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ ३५ ॥ भाषार्य - शिरस्त्राण धारण करनेवालेके निमित्त नमस्कार है, वा बेलपत्र धारणले प्रसन्न होनेवालेके निमित्त नमस्कार है । और देशवरण स्यूत अगरखा कवच धारण करने वाले के निमित्त नमस्कार है, बस्तर धारण करनेवालेके निमित्त नमस्कार है, रथका गोपनस्थान वा हाथोके ऊपरकी अम्बारीमें विद्यमानके निमित्त नमस्कार है। और प्रसिद्ध निमित्त नम- स्कार है, प्रसिद्धसेनावालेके निमित्त भी नमस्कार है । और रणके बोजेमें विद्यमान के निमित्त और वाद्यसाधनदण्डआदिमें होनेवालेके निमित्त नमस्कार है ॥ ३५ ॥ भावार्थ - यह खसार बिल्वके तुल्य है, इसमें जलके तुल्य आफ्फी शोतल वेदवाणी है, आप कलचके समान मायासे ऐसे ढके हैं जिस प्रकार शरीर बखारसे आच्छादित होता है, सगुण सत्यविज्ञान धनादिसेनारूप हैं, जिससे पापादि शत्रु भागते हैं आपका यश वेदा- दिमें बहुत प्रकारले सुना है, इसीसे वेदको श्रुति कहते है वही दोषरूपी शत्रुके निवारण करनेकी सेना है, उसके शब्द दुन्दुभी हैं, जिस सेनासे पापादेशका हनन होता है ऐसे आपके निमित्त नमस्कार है ॥ ३५ ॥ "