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ऽध्यायः ५. ] भाष्यसहिता | (७१) आदिस्यमडलमें स्थित ( "शिपयोऽत्र रश्मय उच्यन्ते तैराविष्टो भवति" इति ) के निमित्त नमस्कार है । और तृप्तिकर्ता मेषरूपसे तृप्तिकर्ता वा चार पदार्थों की वर्षा करनेवाले के निमित्त और बाणधारी के निमित्त नमस्कार है ॥ २९ ॥ मन्त्रः । नमस्वायं चामुनाचनमोहचवर्षीय से च॒नमोबुद्धाय॑चसुवृष॑च॒नमोग्ग्यायचप्न- घुमाय॑च॒नमऽआशवें ॥ ३० ॥ ॐ नमो हस्यायेत्यस्य कुत्स ऋषिः । विराडार्षी त्रिष्टुप छन्दः । रुद्रो देवता | वि० पू० ॥ ३० ॥ माध्यम् - ( हसाव ) देवुममाणक: ह्रस्वः तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु (च) ( वामनाय ) संडाचितादयवाय ( च ) ( बृहते ) बृहन् मौढाङ्गस्तस्मै ( च ) ( वर्षी यसे) वर्षीयानातज्ञवेन वृद्धरतस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( वृद्धाय ) वृद्धो वयसा- धिस्तस्मै (च) (सवृधे ) वर्धन्त विद्याविनवादिगुणैस्ते वृधः पण्डिता कि तैः सह वर्तत इति सत् तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( अध्याय ) जगतामग्रे सव: व्यय- स्वस्मै ( च ) ( यमाय ) मुख्याय ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ ३० ॥ भाषार्य--पशरीरके निमित्तभी नमस्कार है। और समुचित अवयव में व्याप्तके निमित्त नमस्कार है, मोटाइके निमित्त नमस्कार है, अतिवृद्धिके निमित्त नमस्कार है, अवस्था में अधिक के निमित्त नमस्कार है, विद्या विनय आदि गुणयुक्त पडितोके साथ वर्तनेव ले युवाके निमित्त नमस्कार है। और मुख्य सब जगत् में प्रादुर्भाव होनेवालेके निमित्त नमस्कार है सबमें प्रथम मुख्य निमित्त नमस्कार है |॥ ३० ॥ विशेष-आशय यह कि जब सृष्टि नहीं थी तब आप थे, आप सबसे प्रथम और स कहे जाते हैं सापको नमस्कार है ॥ ३० ॥ मन्त्रः नम॑ऽआशवैचाजराय॑च॒नम॒हशीग्थ्योपचुशी- फ्ययनमुऽऊम्म्यायचावस्वरुपायचुन- मनाया चुदीप्यायच ॥ ३१ ॥ +21