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(७०) रुद्राष्टाध्यायी- [ पञ्चमो- तस्मै (शितिकण्ठाय ) शिनिः श्वेतः कण्ठो नीतिरिक्तमाणो यस्य शिनिकटस्तस्मै ( नमः ) नमोऽस्तु ॥ २८ ॥ भाषार्थ-बुकुरोंके अन्तर में स्थतके निमित्त नमस्कार है, के अधिपति किरातक अन्तर में स्थित आपके निमित्त नमस्कार है, ( यह पूजावाधक वः शब्द है उभयती नम स्कारवाले मन्त्र पूर्ण हुए | अव नमस्कारोपक्रम भन्न दिखते है ) और जिन जगत उत्पन्न होता है उनके निमित्त नमस्कार है, दुख दूर करनेवाले देवके निम्न नमस्कार है और पापके नाश करनेवालेके निमित्त नमस्कार है। प्राणियों के अधिपतिके निमित्त नमस्कार है, नीलवर्णग्रीवावाले जयवा नीलवर्ण भाका दिन सूर्यमें स्थित के निमिन नमस्कार है, नोट- कण्ठवाळे वा मेघसहित आकाश में उदित हुए सूर्यके अन्तर में स्थितके निमित्त नम- स्कार है ॥ २८ ॥ मन्त्रः । AS नम॑ः कपुर्विनैचुध्युतकेशाय चुनमं सहसा - क्षायंचश॒तर्धन्वनेच ॥ नमगिरिशुयार्थच शिपिवि॒िष्टाय॑ च॒नमोमीढुष्ट॑मायचेपुंसतेचुन- महत्वार्य ॥ २९ ॥ ॐ ननः कपर्दिने इत्यत्व कुत्रा ऋषिः । भुरिगतिजगती छन्दः । रुद्रो देवता | वि० पू० ॥ २९ ॥ माध्यम् - ( कपादने ) जटाजूटधारिणे ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) (व्युतकशाय) मुण्डितकेशाय ( नमः ) नमोऽस्तु ( च ) ( सहलालाय ) बहुप्राय ( च ) ( शतक- न्वने) बहुधन्वने (नमः ) नमोऽस्तु (च) (गिरिशयाय) गिरौ शेते गिरिशयस्वस्मै ( च ) ( शिपिविधय ) विष्णुरूपाय यहा - शिपिपु पशुषु विष्टः प्रविष्टः' 'पशवो वै शिपिः' इति श्रुतेः ( च ) ( मोष्टमाय ) सेतृतमाय यूने परिणामहीनाथ ( च ( इघुमते ) शभ्युक्ताय ( नमः ) नमोजतु ॥ २९ ॥ भाषार्थ-जटाजूटधारी के निमित्त भी नमस्कार है, मुण्डितकेशके निमित्त नमस्कार है और सहस्रलोचन इन्द्ररूपके निमित्त नमस्कार है, बहुत धनुष धारण करनेवालेके निमित्त नम- स्कार और रुवप्राणियों के अन्तर व्यापक विष्णुरूपके निमित्त नमस्कार है, ( "विष्णु' शिपि विष्टः" इति श्रुतेः । अथवा पशवो वे शिपिः इति श्रुतेः ) व व्याप्तके निमित नम- स्कार है, (अथवा यज्ञो वै शिपिः ) यज्ञ में अधिष्ठातृदेवतः रूप से प्रविष्ट अथवा शिपि प