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ऽध्यायः ४ ] भाष्यसहिता। (६३) माध्यम् - ( कृत्स्नायतया ) कृत्स्नं समग्रमायतं विस्तृतम् अर्थाद्धनुर्यस्य स कृत्स्ना - यतस्तस्य भावः कृत्स्नायतता तथा आकर्णपूर्णधनुष्टुन ( धावते ) युद्धे शीघ्रं गच्छते रुद्राय ( नमः) नविरस्तु । अथवा कृत्स्नः सर्व बायो लाभो यस्य सः कृत्स्त्रायस्तस्य भावः कृत्स्नायता तया ( धावते ) सईलाममापकत्वेन धावने ( सचानाम् ) शरणाग-1 तानां माणिनाम् (पतये ) पालकाय ( नमः ) नमोऽस्तु ( सहमानाय ) अभिभवनशी - लाय ( निव्याधिने ) नितरां विध्यति इन्ति शत्रूनिति निव्यार्थी तस्मै ( नमः ) नमः ( व्याव्याविनीनाम् ) या समन्ताद्विध्यन्तीत्याव्याधिन्यः शूरसेनास्ता सामू ( पतये ) पालकाय ( नमः) नमः ( निषणेि ) खड्डयुक्ताय ( ककुभाय ) महते रुद्राय नमः ( स्तेनानाम् ) गुप्तचोराणाम् ( पंतये ) पालकाय ( नमः ) नमः ( निवेखे ) नितरां चेरुः निवेरुः तस्मै ( परिचराय ) परितः चरतीति परिचरस्तस्मै ( नमः ) नमः र अरण्यानाम् ) बनानाम् ( पतपे ) पालकाय ( नमः ) नतिरस्तु ॥ २० ॥ भाषार्थ- जो हमारी रक्षा के निमित्त कर्णपर्यन्त धनुष सँचकर घावमान होते है, उन रुद्रके निमित्त नमस्कार है, अथवा सब लाभ प्राप्त करानेवाले के निमित्त नमस्कार है, शरणमें आये हुए प्राणियोंके पालक रुद्रके निमित्त नमस्कार है, शत्रुओंका तिरस्कार करनेवाले, शत्रुओं को अधिक मारनेवालेके निमित्त नमस्कार है, सब प्रकारसे प्रहार करनेवाली शूरसेनाओं के पाल- ऋके निमित्त नमस्कार है, उपद्रवकारियोपर खङ्ग चलानेवाळे महान रुद्रके निमित्त नमस्कार है, गुप्तधनहारी जनोंके सन रूप होने से पालन करनेवालेके निमित्त नमस्कार है, अपहारकी इद्धिसे निरन्तर फिरनेवाले तथा आपणस्थानमें हरणकी इच्छासे फिरनेवाल (गडकटों ) के अन्तर्यामीके निमित्त नमस्कार है, वनोंके पालन करनेवाले के निमित्त नमस्कार है ॥ २० ॥ विवरण-जगत्भरमै सर्वात्मा रुद्र है, इस कारणसे स्तेनादि भी रुद्ररूप लिखेह, स्तेनादिके शरीर में जो ईश्वर इन दो रूपोंसे ईश्वर स्थित है, जोवरूप स्तेनादिशब्दवाच्य है, ईश्वर रुद्र- रूपमे लक्षित है - जैसे शाखाके समसे चन्द्रमाको दिखाते हैं इस प्रकार लक्ष्यार्थकी विवक्षासे मंत्रोम लोकिकशब्द लिखे हैं ॥ २० ॥ मन्त्रः । नवञ्च॑ते॒ परि॒वञ्च॑तेस्तानाम्पत॑ये॒नमो- नमो॑निष॒ङ्गिणऽइषुषिमते॒ तस्कराणाम्पतं- ये॒नमोनम कायियों जिघ सड़यो मुष्ण्णुताम्पतये॒नमोनम सिमड्योनकु- अयोधिकृन्तानुम्पयनमः ॥ २१ ॥